स्वर्ग के रत्न | Swarg Ke Ratna

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Swarg Ke Ratna by महावीर प्रसाद गहमरी - mahavir prasad gahmari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+&‡ स्वगके रन {< १८ ¢ ॐ ॐ ৯২ कु [भ (न म न न च अरि तसा वद्‌ रेडी नहा आया तच महाराना गडा म धडा इत्तनम वह छडा आ पहचा । महाराना वक्षछास्यान उससे कहा कफ तृम्दारा घडा जरा छुस्त ह, इसालय म अपना घड़ा तर র্‌ च ৭ জি इनाम देती ह। यद्द कद्द कर उन्होंने अपनो घड़ा उस लेडीके द्वाथम दी । इस वर्तावस वद्द छडी बहुत शरमायी ओर इसके वाद उसने तरत इस्नेफा दे दिया। साइयो सौर बहन 1 शस वानसे दमष्ठो विचार करना चाहिये फि मद्दारानी विक्टारियाक्ष बदले अगर ভুলহা জবাই राजा, हाक्षिम या दिमागी अमीर द्वोता तो क्या धरता ? चद्द छफेसा फटा नचन बोलना ? आर अपने मिजाज़को कितना गरम कर देता ? पर यह सब छुछ न करक महारानीने उल्दे अपनी घडी इनाम दी | यह कितनी बडी लियाफतकी वात द जरा ख्याल ता कीजिये । क्या इसले हमका यह सोचनेकफा मौका नहीं मिलता कि जब महद्दारानो विज््यारया जसे आदमी भी अपन स्वभाव को जीतते ह ओंर अपना गुस्सा गोछते द तथ हम उनके आग किस गिनतीम हू ? आर तिसपर भी हम कितना गुस्खा करते ह, कितना मिज्ञाज फरते ह और नाद फ कितने दैसन होते छू यह तो जरा सेचिय। महारानी बविस्टोरिया उस समय गस्सा करती तो उस लेडीको सजा दे सक्षर्ती, मोक़फ कर सकती, उसका अपमान फर सकतीं गर कई तरहले उसको हेरान पर सकरती। पर याद रखना कि हम जिन पर गम्सा करते ह उनका कुछ भी पही ररसकते ओर तोभी नाहक त्योशे बदलते हैँ | इसलिये यो त्योरी बदलना ओर আন वातप गस्ते हो जाना तथा सन बिगाडना कितना खराब दे इसका तो जरा ख्याल कीजिये । अगर एसे हण्शान्त नजरके सामने रहेंगे तो धीरेघीरे हम अपने




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