प्राकृतिक विज्ञान | Prakratik Vigyan

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Prakratik Vigyan by मिस्टर चिन्तामण सखाराम देवले - Mistar Chintaman Sakharam Devle

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फ़ा अज्लसेही बुल्वुलोंका चागमें कोई नहीं, था जो नर्गिस चहभी, कर्नल, आँख दिखाने छगा ! किन यदद सब परिणाम दमारी सूखैताका है, अन्यथा दम उन रोभियोंधे, जिनकी चिकित्सा हमने सेठ करोड़ीमलजीके आअहपर निः्वुल्क की थीं, आनन्दसे कई सद्दल् रुपया लेकर कई भाषाओंमिं * प्राकृतिक विज्ञानका मुद्रण करा सकते थे और फिर किसीका भारभी दमारे माथे न होता; या यहसी कद्दा जा सकता दै कि यद्द सब हमारेद्दी भाग्यका दोष है । इसीसे:-- रन लायी आख़रश, तकदीर अपनी एक दिन, फेरलीं * कनेल ” निगाहें, जो उन्होंने एक दिनि। . यह चातत निर्विवाद हैं कि सेठ करोड़ीमलजी, जो कि हमारी सूखेतासे किसी समय हमारी दृष्टिमें वहुत उच्च थे, भब अपना वास्तविक रूप दिखानेको उतारू हो गये हैं । क्योंकि उन्हेंनि हमको एक का लिखा दै, जिसकी भाषा बहुत समभ्यतासे गिरी हुई है, भोर जिससे स्पष्ट है कि वह प्रेसवाठोंको “प्राकृतिक विज्ञान” के मुद्रण एवं जित्द आदि बंधायीका श्ूह्य दो सो रुपयेके अतिरिक्त शेष धन देनेकों प्रस्तुत नददीं हैं । परन्तु इम यद्द नहीं कदद सकते कि सेठजी किस आधारपर प्रेसवालॉकों शेष रुपया देंगेको प्रस्तुत नहीं हैं, जव कि रन्द्वने अपने ग्यारहवीं एप्रिल सनू १९२५ इं० के कार्डमें स्पष्ट रुपसे इमसे प्रश्न किया है कि ब्रेप्ठवालेको कितना रुपया और देना है । दम यद्दॉपर सेठजीके उस पत्नकी उन पंक्तियॉंकी प्रतिलिपि निश्नमें देतें दैं:-- खाराकुवा, मुंबई पोस्ट न॑० २ डा० पी० झाचाये जी, पत्र आपका मिछा दाल जाना । छापेखानेंवालेके यहां कया देरी दे । उसमें कितना रुपया लगेगा । पट़िंे २००] दीने हैं, अब कितने और 'वाहियें । सब दाल छुलाछा देना चाहिये । किरोड़ी मठ इसके अतिरिक्त सत्ताइसवीं फेलुएरी सन्‌ १९९२४ हं० के आारारेके ' देश भक्त * अद्ध साप्तादिंक समाचार पत्रमें, जिसके भाइक उस समय सेठजीमी थे, पुस्तकके सम्न्बध में * सेठ करोड़ीमकजीकी उदारता * शीषेक निश्न सूचना निकल चुकी है, और उसपर सेठजीने आजपयेन्त कोई भापत्ति नहीं की! द्‌ः




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