मिट्टी की ओर | Mitti Ki Aor
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.46 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।
'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।
सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(जी इतिहास के दृष्टिकोण से में वे कलम लेकर उतरने में शरमाते थे दूसरे सारा श्रोता-समुदाय ही छनके साथ था। जो फाम लेखक लिखफर नहीं कर सकते थे घह्दी काम घड़ी दी सुगमता के साथ जनता कवियों को चिढ़ा कर कर रही थी। समाज में अन्यावद्दारिक एव फ़जिम मार्से वोलनेयाले मनुष्य का नाम ही छायावादी पढ़ें गया था और फाफी गंभीर लोग मी फमी-कभी ऐसा मलाफ कर चैठते थे । फिसने ही छायावादी कवियों के सेवन्ध में तरइ-तरद की राप्पें उड़ायी लाती थीं और सोग सउनके सवन्घ में मनगदृन्व फयाएँ कद्दने में रस पाते थे । एक बार सुधा में ही पॉच प्रकार के कवियों के कार्टून छपे थे जिनमें से क्रीस्फाय दीर्घफेश पन्ञघारी एक उवूप्रीव अनन्सकी ्रोरी की भी तसवीर थी । एक दूसरे फाून में मग्ततरी पर चढ़े हुए एक दोसलघारी कबिज्ी थे ओो उस पार पहुँचने के लिए शुत्य से कुछ निवेदन करने की मुद्दा में विराजमान थे । झद्दात-कुल-शीसता का श्रम दिवेदी-युग से आाती हुई विनयशीक्ष इतिवृसास्मकता के सुफाचिले में अपने अददकारी व्यक्तित्व एव घुँ धत्ती वासी फे साथ अचानक उठ खड़ा होनेवाला छायावाद हिन्दी-मापी जनता को अजनवी-सा लगा। पारों ओर से आवाल छाई अज्ञाद-कुत-शीक्षस्य वासो चेय न कस्यचित् । किसी ने कद्दा यह रवीन्द्रनाथ का अनुकरण है किसी ने कद्दा यह अप्रेजी फे रोमारिटिफ कवियों का प्रभाव है किसी किसी के फद्दने का यद्द भी अमिप्राय था कि सादित्य रददस्य वादी साधु घन कर सनता को ठगना चाहता है । जय से हिन्दी में प्रगतिवाद के नाम पर एक नये शान्दोल्लन का आविर्माव हुमा दे तव से कु ल्लाग यह मी कहने लगे हैं कि छाया-
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