हिंदी कथाकोष | Hindi Katha Kosh

Hindi Katha Kosh by धीरेन्द्र वर्मा - Deerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्राखंडल-बायु | झाखंडल-इंद्र का पर्याय । दे० इंद्र । च्पारास्त्य-अरास्त्य ऋषि के पुत्र का नाम । व्याग्तीघ्र -प्रिंयघत और चहिंष्मती के उयेप्ठ पुन्न का नाम । चिप्छुपुराण के छननुसार इनका नाम छन्नीघ्र था । उर्ज- स्वती नाम की इनकी एक भझगिनी थी । दे० “असीघं । ब्माजकेशिन-इंद का नामांतर । इन्होंने वक का प्रतिकार किया था । प्झाजगर-महाभारतकालीन एक प्रसिद्ध ब्राह्मण का नास जो घयाचित चुत्ति से रहते थे । घ्याज्य-सारवणि मन के पुत्न का नास 1 घ्याज्यप - पिवृगण में से एक । ये घरह्मा के सानसपुन्न पुलद के वंशज थे और यक्नों में थाज्यपान करने के कारण इनका यह नास पढ़ा था । घ्माटविन्‌-याज्ञवल्क्य के वाजसनेय शिष्य । व्यास की यजु: शिप्य-परम्परा सें इनकी उत्पत्ति सानी जाती है । ब्माडि-झंघधकासुर के पुत्र का नाम । इसने घोर तपस्या के द्वारा श्रह्मा को प्रसन्न करके झमरत्व का वरदान साँगा किंतु ऐसा असंभव होने के कारण इसे इच्छाजुसार रूप परिवतन करने का चर सिल गया जिसके वल्त पर निर्भय दो कर इसने झनेक अत्याचार किये। शिवाजी का परासव करने के लिए यद्द कैलास गया जहाँ चीरभद्ठ से इसका युद्ध हुआ । घुद्ध में सत्युभय से इसने सर्प का रूप धारण किया किंतु उसमें थी श्राणों का संकट देखकर इसने पावंती का रूप घारण कर लिया । रत सें शिव को इस कपर रूप का पता लगा झौर उन्होंने इसका चघ किया 1 घ्मातातापि-एक प्राचीन ऋषि तथा धर्सशास्त्र अं थ के अ्रणेता ! व्मात्मदेव-एक प्रसिद्ध घाह्मण का नाम जो तुंगभद्ठा के तट पर रहते थे और निस्संतान होने के कारण बहुत चिंतित रहा करते थे । एक सिद्ध ने पुत्रोत्पत्ति के लिए इनकी पत्नी को एक फल खाने को दिया किंतु उसने चह फल अपनी बदन को दे दिया । बहन ने भी स्वयं न खाकर उसे एक गाय को खिला दिया । घाइ्मण को जो पुन्न उत्पन्न हुआ उसका नाम घूघकारी पढ़ा. और गाय को जो पुत्र छुद्मा उसके बैल जैसे कान होने के कारण उसका नास गोकर्ण पढ़ा । घुंधकारी बढ़ा अत्याचारी हु ्झौर सोकर्ण को कप्ट दिया करता था । सोकर्ण ने ज्ञान सार्ग का झाश्रय लेकर परसाथे पाप्त किया । घ्याघ्रेय-अत्रि सुनि के पुन्न । कालांतर में झत्रि कुलोस्पन्न सभी वाह्मणों की संज्ञा झात्रेय हो गई । घ्मान्रेयी-अन्रि मुनि की कन्या का सास । इनका विवाह ध्स्ि के पुत्र झंगिरा के साथ हुआ था जिससे इनके पुन्न 'झंगिरस' नाम से प्रसिद्ध हुए । दे० “झगिरा” । श्मान्रेयस्मृत्ति-एक स्सति श्रंथ जिसके रचयिता अत्रि मुनि कहे गये हैं । आदित्य -अदिति के पुत्र और एक मसिद्ध बैद्कि देवता । पाजुप मन्वंतर से इनका नाम त्वप्टा था । वैचस्वत सन्वंतर से ये आदित्य कदलाए । कारलांतर में इन्हें सूर्य का पर्याय साना जाने लगा । पहले झादित्यों की संख्या छः दी थी जो क्रमशः सिश्र, अयंसनू, भग, वरुण, दुक्ष तथा झंश [ २११ के नास से प्रसिद्ध थे । चेदोत्तर काल में प्रत्येक सास के लिए एक एक छादित्य की करुपना हुई । तैत्तिरीय श्राह्मण में भी झाठ आदित्यों के नास झाते हैं--१. झंश, २. सग, ३. घात, ४. इंद्र, £. विवस्वन्‌, ६. सिन्न, ७. वरुण तथा प८. अर्यसन्‌ । मतांतर से आठवें आदित्य अदिति के पुत्र सातंरढ थे । झाित्य वास्तव सें एक देववर्य का नास था जिससे स्वेप्रमुख चविप्छु थे । '्ञादित्यकेतु-धतराष्ट्र के एक पुन्न का नास जिसका व्घ भीस ने किया था । ब्मादिवराह-भगवान्‌ विष्णु का एक्ट अवतार जो दिरण्यात्त से शरथ्वी का उद्धार करने के लिए हुआ था । दे० “वराद” । ाधूत रजसू-गय_ राजा के पिता का नाम । मतांतर से इनका नाम असूर्तरयसू था । झ्मानंद-१. एक प्रसिद्ध घ्ाह्मण जिनकी उत्पत्ति सहपि गालन्य के कुल में हुई थी । २. सेघातलियि के 'सात पुत्रों मे से एक । ३. सहार्मा बुख के एक शिष्य जिनसे तथागत का इतना विश्वास था कि वे इन्हें अपने समान ही समसते थे । घ्मासंदरगिरि-शंकराचार्य के शिप्य और वेदांत के मकांद पंडित “शंकर दिग्विजय” इनका असिद्ध अंथ है, जिसमें आचार्य के शास्तार्थों तथा सुख्य कृर्त्यों का दिवरण है । शंकर के 'शारीरक भाष्य' की टीका, तथा गीता और उपनिपर्दों पर इनके भाप्य झत्यंत विद्वत्तापूर्ण 1 ब्यानंद्चघन-एक मसिद्ध काश्सीरी पंडित तथा काव्य- शास्त्र के दाचाये ।'काव्यालोक' “ध्वन्यालोक'तथा 'सहदया- लोक' इनके मसिद्ध अंथ हैं । ये ध्वनिवादी हैं और भ्रल्न॑ं- कार शास्त्र के आचार्य में इनका महत्वपूर्ण स्थान है । करहण को राजत्तरगिणी में एक स्थल पर इनका जिक्र दाता है जिसके अनुसार ये काश्मसीर के राजा अवंतिवर्मा के राजपंडित सिद्ध होते हैं । झवंतिवर्मा का समय नवीं शताब्दी साना जाता है । घ्यानक्ुदुमि-कुष्ण के पिता वसुदेव का एक नामांतर । इनके जन्म के श्रेव्सर पर देवताओं ने झानंद्‌॒ से ढुंदुभी बजाई थी इसी से इनका यह नाम पढ़ा । दे० “बसुदेव' । प्मानतं-राजा शर्याति के पुन्न का नास । छापस्तंव-मसिद्ध वैदिक कषि तथा स्टतिकार । इनका समय तीसरी शताब्दी ई० पू० माना जाता जाता है । इस नास के कई क्षि सिलते हैं कितु दो विशेष प्रसिद्ध हूँ--एक सुन्रकार और दूसरे स्टलिकार ! इनके नाम पर छापस्तंव संहिता भी मसिद्ध है जिसमें कुतकर्सी के फल तथा पापों के प्रायश्चित्त का विस्तारपूर्वक विवरण है । धर्म में क्षसा का स्थान सर्वोपरि माना गया है | ब्मापिशलि-एक प्रसिद्ध वैयाकरण जिनका उरलेख पाणिनि ने संधिप्रकरण में क्या है । इनके द्वारा प्रसीत आपिशलि नामक अंथ से काशिका तथा केयट का उल्लेख होने से ज्ञात दोत्ता है कि काशिकाकार तथा कैयट इनके के पूर्व हो चुके थे । आयु-मसिद्ध चंद्रंशी राजा पुरूरवा के उ्येप्ठ घुन्न जिनका,




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