हिन्दी साहित्य कोश भाग - २ | Hindi Sahitya Kosh Bhag - 2

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Hindi Sahitya Kosh Bhag - 2 by धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Vermaब्रजेश्वर वर्मा - Brajeshwar Varmaरघुवंश - Raghuvanshरामस्वरूप - Ramsvrup

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धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ * कक पल ७. ७ द अपने ही फॉलीका ठण्ट देता है क्‍्योंफि जन्ततोगत्वा उसके सवारी निकालनेसे दी बकरी धवकर मर गयी थ पाँचवें अकमें कोतवांदी गर्दन पतली दोनेके कारण गोंवरथनदास पकड़ा जाता टै ताकि उसकी मोटी गर्दन फॉसीके फर्म ठीफ बैठे । अब उसे अपने शुरुकी बात याद आती है । छठे अकमें जब पट फॉसीपर चदाया जानेकी है शुरुज और नारायणदास आा जाते इ। शुरुजी शोगरथनदातके फानमें ,कुछ कहते है और उसके वाद दोनोंमें फॉसीपर चढनेके लिए होड लग जाती है। श्सी समय राजा; मन्त्र और कोतवाल आते है । यदद कहनेपर कि इस साइतमे जो मरेगा सीधा वैकुण्ठफी जायगा; भन्त्री और कोतवाठमें फॉमीपर चढ़नेके छिए प्रतिबद्दिता; उत्पन्न शो जाती है। फिल्तु राजाके रहते कौन जा सता है; ऐसा कद राजा स्य फॉसीपर चढ़ जाता है | बिस् राज्यमें विवेक'अविवेक का सेद न फिया जाय वददाकी भजा झुसी नददी रद सकती; यदद व्यक्त इस प्रदसनका उृब्य है 1 -छ० सा० बा० संचरीप-अयोध्याफ सूची राज अम्बरीप | ये इददाकुवण- की ?८ वी हुए थे । इन्हें कही प्रह्युधकका पुत्र कहा गया हैं और कही नामाग का । ये भगीरथकें प्रपौत्र थे । थे अत्यन्त पराक्रमी तथा वीर थे । कहा जाता है कि इन्होंने १० लाख राजाओंको रणमें पराजित किया था । ये पक पहुँचे हुए विप्युभक्त मी थे । ये अपना समस्त राज्य कार्य कर्मचारियोंकि सरकषणमें छोब्कर अधिकाण समय भगवत्‌: अजनमें बिताते ये । इनकी बल्याका नाम झुन्दरी था जो कि शुणोंकी च्ष्टिसे भी सार्थक था । ण्क बार देंव्पि नारद सथा पवेत झुन्दरीपर मोहित दो गए और उसे पानेकी चेटामें विष्णुके पास गये। नारठने पर्वत्रके लिए और पर्वतने नारदके छिए विप्णुसे प्रार्थनाकी कि वे उनका मुख वन्दरकासा बना दें । विप्णुने दोनोंकी प्र्थना स्ीकार कर दोनोंका मुख बन्द्रका बना दिया । दोनों व्यक्तियोंकी आकृति वन्द्रोंकी देख सुन्दरी भयभीत होकर पिताके पास गयी । लव अम्वरीपके साथ वापस आयी तो दोनोंके मध्य भगवान्‌ विष्णुकी भी वैंठे पाया । झुन्दरीने बरभाछा उनके गढेमे टाछ दौ और विप्णुकी प्रेरणासे अम्सबोन हो गयी ! दोरों ऋषियेनि कोधावेश्म अम्बरीपकी शा दिया कि वे सय अन्थकारादत होकर अपना भरीर सक न देख से । इसपर अम्बरीपके रक्कार्थ विप्णुका '्वक सुदर्धन उपस्थित हुआ और अन्थकारका विनाम कर मुनियोंकी खबर लेनेको तत्पर हुआ । दोनों भुनि भागते- मागते विष्णुकी गये, तम भगवान्‌ दारा क्षमा किये जानिपर 'चक्राझुदनके आतकते मुक्त हुए । सच वात यह थी कि राधा (लक्ष्मी सुन्दरीफे रूपमें अम्बरीपके यहाँ अवती हुई थी और उन्होंने शीरूण्ण पति रुपें पानेके छिए अपूर्व तपस्या की थी ! इसी प्रकार एक बार दवा इचीके दिन अम्बरीप पारण करने जा रहे थे कि दुर्बासा क्रपि अपने शिप्यों समेत था पहुँचे । अम्परीपने भोजनके लिए उन्हें आमन्तरितत किया पर वे निमन्त्रण स्वीकार यार सन्ध्या- वदनके लिए ले गये । वहाँ उन्होंने देर कर थी । हावी कैबल एक पल शेप रट गयी । दादचीमे पारण करना ६ न करनेसे ठोपका मागी दोना पडता है। अत अम्बरीपने दिद्दानू आछाणोंकी सम्मति लेकर भगवानका ्रणासून अदण कर लिया । जव दुर्वोसा आये तो दे उस छिए अम्बरीपयर बरस पटे । भावावेशम उन्होंने अपनी जराका एक वाल तोडकर प्रथ्वीपर पटक दिया जो छल्ला राक्षमी दनकर राजाका विनाश करनेके लिए झपटी । ठीक उसी समय झुवर्शुन-चक् ्रकेट हुआ । वह इस्याका सददार दर दुर्दासाके पीछे दौडा। दुर्बोता भागते हुए क्रमश आता, शिव और विष्णुकी दारणमें गये किन्तु उन्होंने उनकी रक्षा करनेमें अपनी अक्षमता व्यक्त की । फलखरूप ये अम्वरीपकी छरणमें आये । अम्वरीपकी प्रार्थनापर चक्र चान्त हुआ। राज तव॒ तक प्रतीक्षा कर रहे थे, अतण्व दुर्बाताने उनका आतिय्य स्वीकार कर भोजन किया और छनकी अइसा करते हुए वे अपने आधम लौटे । भरत जब शामको वापस छौटानेक्े लिए चित्रकूट यवे थे, उस समय देवसाओंको अम्बरीप और दुर्बोसाकी कथाका सरण कर अत्यन्त निराणा दो रही थी-'शुधिकर अम्वरीप दुरवासा । भे झुर सुरपति निपट निरासा ॥” (मा० भग) । यह कथा अलन्त प्रसिद्ध है। सूरदामने भी इसका चठिख 'दुरवासाको शाप निवारथो पत रासी' सन्दर्भमें किया है (यू ५४९) । कवीरके बीजकममे मी इनका उल्टेख हुआ है (बीजका र०७९२) |. --ज० प्र० श्ी० इन्द्रधुम्नकी तीन कन्याओंमें कम्या अम्दा थी। मीष्मने अपने दो सौतेठे छोटे बीर्य और चिन्नागदके बिवाधकें छिए काशिराजकी पुषियोंका अपडरण किया था। मीष्मके पैराक्रमके कारण वे उनपर युग्ध थी और उनसे विवाह करना चाइती थीं। किन्तु सीप्म आजीवन अक्मचर्वकी प्रतिश्षा कर चुके थे, अत यद विवाह सम्पन्न न हो सका । इस अपड्रणकी श्टनाके पूर्व इनका विवाद शात्वके साथ धोना निश्चित दो चुका था । परन्तु इस घटनाके कारण उन्होंने मी अम्नासे विवाह करना अस्वीकार कर दिया । प्रतिकीधकी मावनाते प्रेरित दोफर अम्बाने कठिन तपसवाकी और छिवका वरदान प्राप्त कर आगामी जन्ममें दिखण्डीके रुपमें अवतीर्ण होकर अर्जुनके द्वारा मीष्मको जर्जर कराकर बदला छिया। भीष्म इस बास्तबिकतासे अवगत ये । “ज० प्र० श्री शंबाछिका-कांगिरान इन्द्रयुम्नकी किए सन्या ऊम्बाछिका थीं । सत्यवतीके पुत्न विनिन्वीयं इनके पत्ति थे और पाडु इनके पुत्र पाइकी उत्पत्ति व्यासके द्वारा मानी जाती है । प्र०् श्री० अंधिका--* सदिताओंमें अस्विकाकी रुकी भगिनीकें रूपसे सम्बोधित किया गया ई तथा रद्के साथ बलिटानका अश भ्रहण करनेके छिंण महान किया गया हैं ! मैज्नाविणी सदितामें इन्हें रुद्रकी योनि (माता * पल्नी भी वत्ताया गया है। इन्हें हेमन्तकें प्रतीक रुपमें वर्णित शिया गया है । कालान्तरें इन्हें ऋमझ दुर्गा और उमा मानकर पूजा गया--“गए सरखती तंद क दिन सिव-अम्विका पूजन हित” (सूर० पद २०९११ । दे० उमा, 'दुर्गा । ०? काधिराव इन्दचुम्नकी मंहाटी कन्याफा नाम भी था। उन्हें अपटरण जता फिनिशवी्यसे




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