निराला रचनावली 7 | Nirala Rachnawali 7

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Nirala  Rachnawali 7 by नन्दकिशोर निगम - Nandkishor Nigam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दु शासन उनके पास था। उन्होंने कहा-- देखी दु शासन बस्च की तरह या अधिराम शरधारा कभी शिखणष्डी के गरासन से न निकलती होगी कब को मे करनेवाले ये तीक्षण तीर कभी शिखण्डी के छोड़े हुए न होंगे जिन वाणों से मेरा णरीर जर्जर हुआ जा रहा है ये कभी शिखण्डी के वाण नहीं हो सकते | सिंद॑चय ही इन तीरों का मारनेवाला अर्जुन है । एक अर्जुन को छोड़कर संसार मे दूसरे किसी मनुष्य मे यह बल नहीं है कि बह मेरा कवच भेद कर सकें गा महावीर भीष्म की देह में कहीं तिल रखने की जगह भी न रह गयी थी | अंग-अंग मे वाण आर- पारहोंगये थे । सूर्यास्त से कुछ पहले अटल ब्रह्मचारी मह्ाधनुधर भीप्स पितामह रथ से शिर गये । कौरवों में हा-हाकार मच गया । महावीर भीष्स से गिरकर भी मुश्लिका-स्पर्श नहीं किया । जिन अगणित तीरो से उतकी तपर्चर्यानिरत पिन देह क्षत-विक्षत हो रही थी उन्ही के सहारे गारों की सेज पर लेटे हुए से रह गये । क्र महाराणा प्रताप पौराणिक आख्यान न होकर ऐतिहासिक आख्यान है । यह भाकार में सबसे बडा है । इसके नायक भारतीय इतिहास के मध्यकाल के प्रसिद्ध क्षत्रिय वीर महाराणा प्रताप है। पूरी कथा ओजपुर्णे है । बाक्तिसिह के अन्तईईस्टर और पृथ्वीराज की पत्नी की चारिचिक दूढ़ता के वर्णन से उसमें गहराई आयी है । युद्ध के साथ अन्य घटनाओं और म.नव-मन की गतियों का वर्णन भी निराला अत्यन्त सशक्त रूप में करते हैं । सप्तम परिच्छेद में बक्तिसिट के अन्तद्स्द्र का बहुत ही सटीक वर्णन हुआ है । इसी तरह द्वादशा परिच्छेद में पृथ्वी राज की पत्नी से अकबर के एक घुप्प अँधघेरे कक्ष मे मिलने का वर्णन अत्यन्त प्रभावशाली है सुन्दरी को उसके ताऊ वीरवर महाराणा प्रतापसिद्ध की याद आयी । उसने सुना था कि हुल्दीचाटी के अगणित छत्रुओ के अन्दर घिरकर भी वे नहीं घबराये । घंर्य के साथ अपरिसित विक्रम से बन्नुओ का संह्ार करते गये । मैं उन्हीं की भतीजी हूं उनके सगे भाई की लड़की यदि वे अगणित दातुओं में अपने धर्म देश और जासि की मर्यादा की रक्षा कर सकते हैं तो क्या मैं यहाँ अपने घर्म और सम्मान की रक्षा त कर सकूँगी ? इतना विचार पैदा होने के साथ ही साथी अनेक हाथियों का बल उसके भीतर आ गया । कड़ककर उसने कहा तू कौन है मुझे छेड़नेवाला ? क्या तू राजपूतों की स्त्रियों को सही पहचानता ? एकाएक कमरे में सैकड़ों बत्तियां जल उठी और सुन्दरी ने देखा उसके सामने दीन भाव से भारतेक्वर दिस्लीपतति अकबरदाहू उससे प्रेम को भिक्षा-प्रार्थना कर रहे हैं । निराला ने ये चारों पुस्तकें स्वाधीनता-नान्दीलन के दौर में रचीं और उनके द्वारा हिन्दीप्रदेश के बच्चों को चारित्रिक दृढ़ता वीरता और स्वा्तरण्य-प्रेम की शिक्षा दी । घ्रुव और प्रज्लाद दोनों ऐसे बाल-च रित्र है जो राजशक्तिं से टकराति हैं। भीष्म का प्रतिज्ञा-निर्वाह और वी रता अनुपम है । महाराणा प्रताप ससन्वन स्व॒तन्त्रता-दीप लिये फिरनेवाले बलवान हैं । उनके चरित्र को इस्लाम-बिरोधी रूप में न देखकर स्वतन्त्रता के लिए प्राणपन से संघर्ष करनेवाले योद्धा के रूप में खना चाहिए निरासा घामिक ७ के पक्मपाती थे इसलिए उनमें इस्लाम के प्रति ढेष न था. महाराणा प्रसाप नामफ पस्तक लिएसस थी




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