वेदांत धर्म | Vedant Dharm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७) सो वह फिर पृथ्वी पर सचुष्य का रूप धारण करते हैं । इसलिये यह पृथ्वी ही करें भूमि है, इस प्रथ्वो से दो इस लोग सुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। इसलिये इन स्वर्गो' से हमें विशेष प्रयोजन नहीं; तो किस चस्तु को प्राप्नि के लिये हम लोगों को चेष्टा करनी चाहिये ? मुक्ति के लिये । दमारे शास्र कहते हैं कि मुक्ति दी हम... श्रेष्ठ से श्रेष्ठ स्वर्ग से भो तुम कृति के दास सात्र लोगों का लक्ष्य है हो । तुम बीस हज़ार वषे तक राज भोग करो, इस से क्या लाभ होगा ? जितने दिन तक हुम्दारा शरीर रहेगा, उतने दिन तक तुम सुखो के दास मात्र होगे । जितने दिन तक देश काल ठुम्दारे अपर काये कर रहा है, छतने दिन तक तुम क्रोत दास हो । इसी कारण से हम लोगों को बाद्य प्रकृति और अन्त: प्रकृति दोनों को जीतना पड़ेगा | प्रकृति जिस प्रकार दुसरे पैरों तले रहे, उसे पदुदलित करके उसके बाहर जाकर स्वाधीनत।पूवेक 'पनी महिमा को प्रति- ध्विव करना होगा । उस समय जन्म और मरण के पार हो जाओगे । उस समय छुस्द्दारा सुख चला जायगा, इसलिये तुम उस समय दुःख को भी पार कर ज्ञातओोगे। उस समय तुस सर्वावीत, अव्यक्त,झविनाशी शानंद के अधिकारी होगे। हम लोग जिसे यहाँ पर सुख और कल्याण कहते हैं वह उस नस्त आरंद का एक कया मात्र है । यदद अर्न॑तर आनंद ही हम लोगों का लक्ष्य है। ात्मा जिस प्रकार अनंत झानन्द स्वरूप है, वैसे ही लिंग वर्जित है । ात्मा में ख्री और पुरुप का भेद नहीं है । देह के २




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