देव ग्रंथावली | Dev Granthawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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य देव ग्रंथावली ग्रंथों में स्थान दिया है । परन्तु इसमें कदापि सन्देह नहीं कि देव में यह प्रवृत्ति अप्रनी चरम सीमा पर है। यह तो निक्चित रूप से कहा जा सकता है कि कम से कम सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में किसी अन्य कवि ने अपने छन्दों को हेरफेर कर इतने अधिक स्थलों पर नहीं रकखा है अन्य भाषाओं के किसी कवि ने भी ऐसा किया होगा कहा नहीं जा सकता । देव के कुल छून्दो मे से प्राय आधे एक से अधिक स्थलों पर आये हैं । एक ही छन्द तीन-चार स्थलों पर तो साधारणत मिल जाता है आपुस मैं रस छन्द पाँच स्थलों पर देव मैं सीस एवं बालम विरह जेसे छत्द सात स्थलों पर मिलते हैं । कुछ छन्द इनसे भी अधिक स्थलों पर आए हैं । छ्द-प्रती को की सूची . का इस दृष्टि से विद्लेषण करने पर रोचक निष्कर्ष निकलते हैं । देव के आलोच्य म्रंथों में छन्दों की तुलनात्मक स्थिति निम्नलिखित सारणी से स्पष्ट होती है 2 ही ग्रंथ दोहेजों.... अन्य योग | दोहेजों अन्य योग. कुल केवल इस छंद जो अन्यब्र भी छंद जौ... संग ग्रंथ में हैं. केवल इस | आए हैं. अन्यन ग्रथरमेंह्रैं भी आए हैं १ सुमिल विनोद प्पः ७४ १६२ २७. पघयप ११५ २७७ २ सुजान विनोद. १०१ द् १६६ ६. १८१ १९०. 3१५६ ३ काव्य रसायन. ३७३ २०३. प्र०६ १ ११६ ११७ ६६३४ ४ रस विलास १३२... १११. २४३ १८६... २२३. ४६६ पर भाव विलास गा १७६ १७६ १8६. दंप् २४१. दा? ६ भवानी विलास ७० प्र ३ 9६. १७३ २४९. ८४ ७ कुदल विलास ४... १ ९६ 5६. १३४ २१०. ३०६ ८०९ उप शरद ४२२. €&२३ १३८४४ २८६६. अर्थात्‌ इन सात ग्रंथों के कुल २८९६ छंदों में से १५५४ छंद अन्पत्र नहीं मिलते तथा १३४५ छंद एक से अधिक स्थलों पर आये हैं । यह संख्या अभूतपूर्व है पाठ-मिश्रण --देव के ग्रंथों के अधिकतर छंद अन्पत्र भी सिलने से जहाँ पाठ-संपादस में अत्यधिक सहायता मिलती है इसी सामर्थ्य पर जहाँ कुछ ग्रंथों का केवल एक प्रति के पाठ से संपादन संभव हुआ है वहाँ इन छंदों में परस्पर पाठ-मिश्रण भी धड़त्ले से होने के कारण कठटि- ताई भी कम नहीं होती । किसी भी संग्रह की प्रतियों में जहाँ देव के एक से अधिक ग्रंथ हों उनसें परस्पर पाठ-मिश्रण की संभावना पर निगाह रखना आवश्यक हो जाता है । बैसे पाठ मिश्रण के लिए आधार-रूप में केवल सुख सागर तरंग की एक प्रति का होना पर्याप्त है ं विभिन्‍न ग्रंथों की प्रतियों में हुए पाठ-मिश्रण की संपूर्ण सुची यहाँ देना असंभव है इस ... कारण केवल थोड़े से उदाहरण दिये जा रहे हैं --- है १. ज़ावक के रंग रपटी सी लपटी सीं लोल पटी भऋपटी सी काम केहरी । सुजान विनोद ४ २३ ४ लील पी पाठ नीलपृष्ठी अर्थात्‌ अग्नि के अर्थ में संगत परस्तु सुजान विनोद की लग .. न नि .. किक आक ..




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