रसखान ग्रंथावली | Raskhan Granthavali

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Raskhan Granthavali  by देशराज सिंह भाटी - Deshraj Singh Bhati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समीक्षा माप दे 'ोतिवद्धमार्गी शाखा को निम्नलिखित विशेषताएँ परिलक्षित होती है-- १. स्टगारिकता २. ब्रालंकारिकता वे. भक्ति झौर नीठि ४ कांब्पसप ४. ब्रजसाषा की प्रधानता ६. जीवन-दशन का अमाव १, श्ूं पारिता--रीतिकाल में श्रूगार-वणव की प्रघानता रही है । इसी ग्राचान्य के कारण कतिपय विद्यान्‌ इस काल को “श्रूणार काल कहना उप- युवन समझने हैं। श्र गार-रम का जितना सूक्ष्म विवेचद इस काल में दुधा है, उतना किसी काल थे नही हुमा । इस प्रवृत्ति का मुख्य मारण तत्कालीन राज- नीतिव भौर सामाजिक परिस्थितियां हैं । कवियों का ध्येय भपने भाधयदाता था मनोरजन करना होता था भर मनोरजन के लिए श्रू गार के अलावा और क्या चिपय उपयुक्त हो सकता है । मवितकाल में माधुर्प भक्ति का जो भ्रवाघ स्रोत बहा भौर उसमें जित धू गार को भलोकिक रूप दिया गया, वही रीतिं- काल में ाकर लौकिक भोर मासल बन गया । प्रभम दर्शन से लेकर सुरतांत तब के चित्रों का इस बगल के कविमो ने दडे मनोयोग से चित्रण किया । इसी कारण इनकी दृष्टि में प्रेम धौर नारी का स्वस्थ स्वरुप न झा सका 1 डॉ० सापीरथ सिंध के शब्दों में- 'श्रूंगारिकता के प्रति उनका (री तिकालीन कर्वियों का) दृष्टिकोण मुख्यतः भोगपरक था, इसीलिए प्रेम के उन्चतर सोपानों की श्रोर वे न जा सके । प्रेम को भअनन्यहा, एंकनिप्ता, रपाग, त्तपशचर्या आदि उदात्त पक्ष भी उनकी दृष्टि में बहुत कम श्राएं हैं । चदका विलासोन्मुख जीवन भर दर्शन सामान्यत प्रेम या श्रूगार के वाद्य पक्ष शारीरिक झाक्षण तक ही सीमित रहकर रूप को माइक बनाते वाले उपकरण ही जुटाता रहा 1 यहू भनृत्ति लयिका-भेद, नह- शिख वर्णन, भुनवर्णन, धलकार निरूपणा सभी जगह देखी जा सकती है 1 २. झालंकारिकता--रीठिकालीन कदियो के काव्य के दो प्रमु्त उद्देश्य चे--मनोरजत भौर पादित्य-प्रदर्शेन 1 भालकारिकता का प्राधान्य इन दोनों ही घरणों मे रोतिवालोत माव्य मे समाविप्ट हुमा । यह सच है कि काव्य में




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