गद्य चयन | Gadya Chayan

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Gadya Chayan by बाबू सूरजभानु - Babu Suraj Bhanu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गांव का जीवन १३ जमात कहीं से श्रा जाती श्रौर पन्द्रह-बीस दिनों तक खुब चहल-पहल रहती । लीला कभी जमापुर में होती कभी जीरादेई में । लीला भी बड़ी विचित्र होती । उसमें राम- लक्ष्मण इत्यादि जो बनते कुछ पढ़ें लिखे नहीं होते । एक श्रादमी तुलसी की रामायण हाथ में लेकर कहता-- रामजी कहीं हे सीता--इत्यादि श्रौर रामजी वह दुहराते । इसी प्रकार जिनको जो कुछ कहना होता उनको बताया जाता श्रौर वह पीछे-पीछे उसे दृहराते जाते । लोगों का मनोरंजन इस वार्त्तालाप में ग्रधिक नहीं होता क्योंकि भीड़ बड़ी लगती श्रौर सब कारबार प्राय १००-२०० गज में फैला रहता । मनोरंजन तो पात्रों की दौड़-ध्रूप श्रौर विशेषकर लड़ाई इत्यादि के नाट्य में ही होता । उत्तर में रामजी का गढ़ श्रौर दक्खिन में रावण का गढ़ बनता अथवा श्रयोध्या श्रौर जनकपुर बनता । जिस दिन जो कथा पड़ती उसका कुछ न कुछ स्वांग तो होता ही । सबसे बड़ी तेयारी राम-विवाह लंकाकांड के युद्ध श्र रामजी के श्रभिषेक--गद्दी पर बेठने के दिन--की होती । विवाह में तो हाथी-घोड़े मंगाए जाते श्रौर बरात को प्रो सजावट होती । लंका-दहन के लिए छोटे-मोटे मकान भी बना दिये जाते जो सचमुच जला दिये जाते । हनुमान बानर शभ्रौर निशाचरों के अ्रलग-श्रलग चेहरे होते जो उनको समय पर पहनने पड़ते श्रौर हम बच्चों को वे सचमुच डरावने लगते । बानरों के कपड़े श्रक्सर लाल होते श्रौर निद्याचरों के काले । राम-लक्ष्मण-ज।नकी के विक्षेष कपड़े होते श्र उनके सिंगार में प्राय डेढ़-दो-घंटे लग जाते । लोला संध्या समय




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