संचारी रोग | Sanchari Rog

Sanchari Rog by डॉ. वाई. एस. भार्गव - Dr. Y. S. Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व्यक्ति तक पिसी एक माध्यम या विभिन माध्यमों द्वारा पहुंचते हैं। जैसे मलेरिया के रोगाणु मच्छर द्वारा हैजा दस्त श्रायणोध टायफॉयड श्रादि के रोगाणु मकखी के द्वारा श्रथवा खाद्य पदार्थों के माध्यम से व्यक्ति तक पहुंच वर उसे रोग ग्रस्त करते है । संचारो रोगों के सक़मण माध्यम ससचारी रोगों भा सक्रमण विकारी जीवाुम्रो का उनके उपलब्धि स्थानो/सचेयागारों से एव स्पस्थ सुग्राही व्यक्ति तक उपयुक्त पर्यावर्णीय स्थितियों मे बुछ निदिचित्‌ माध्यमों द्वारा होता है । प्राय एक रोग के सक़- गण के लिए एक मध्यम की श्रावर्यकता होती है लेकित बभी-व भी कुछ रोगों थे सक्रमण वे लिए दो या दो से घ्रप्रिक। साध्यमा की स्रावश्यक्ता हो सतती है। सामन्यतया रोग प्रसार मे निम्नलिखित माध्यम ही क्रियाशील है - (व). सम्पर्व सक़रमण (0001801 (शाज्ा।ध5ा0ा ) (स.). सवाहक सक़मण (८८०7 (पाााइ 5101 ) (ग) वायु सवाहित सब्रमण (ठ00106 शाइा 55707 ह (घ) वाहक सक़मण (#धााटा£ धाझाश 55101) (ड) श्परा (8८०01) के माध्यम से होने वाले रोग । सम्पव मे शभ्राने से रोग के जीवाणु उद्गम स्त्रोत से सुग्राही परपोपी तक पहुंच जाते हैं। सम्पर्क सक़मण यह सफ्रमण दो प्रकार से होता है- पु पा दे प्रत्यक्ष सम्पक ( छा ८णाधिट ) . एक सक़मित व्यक्ति के प्रत्यक्ष वारीरिक सम्पर्क छने या लेगिक सम्पर्क में ाने वाड़े स्वस्थ सुग्राही व्यक्ति को रोग सफ़मण होता है । स्वस्व व श्रस्वस्थ त्वचा रलेप्मकला ्रादि पर विकारी जीवाणु सीधे प्सक्रमण बार उसे सक्रमित वर देते है । रोग ग्रसित स्त्री या पुरुप के साथ पुरुप या स्यी के सहवास से. मैथुन जय रोगों (5८्ण्ची# कराए (टिऐं प्र




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