सचित्र हिंदी महाभारत | Sachitra Hindi Mahabharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सभापव ] लोकपाल-सभाख्यानपव पाँचवाँ श्रध्याय सभा में नारद का श्रागमन वेशस्पायन ने कहा--जनमेजय, मददादुमाव पाण्डव श्र गन्धर्व लोग जब उस सभा में श्राराम से बैठ गये तव प्रथ्वीमण्डल पर बिचरते हुए देवऋषि नारद पारिजात, पर्वत, सुमुख श्रोर साम्य श्रादि मद्दात्मा ऋषियों के साध वहाँ पर श्राये । चाहे जहाँ जा सकमेवाले देव- पूजित नारदजी सम्पूर्ण वेद, उपतिपदू, पूर्व-उत्तर-मीमांसा, स्थृति, छन्द, ज्योतिप श्रौर व्याकरण झ्रादि शास्रों के पूरे पण्डित हैं। इतिहास धर पुराणों को वे बहुत श्रच्छी तरह जानते हैं । राजनीति श्र व्यवद्दार-शाख्र के ये श्रद्वितीय पण्डित हैं। उनके समान स्टति शक्तिवाला, प्रगस्भ वक्ता श्रोर प्रमाथनिष्ट चतुर विद्वान श्रसन्त दुर्लभ है । पहले के कर्पों का विशेष पृत्तान्त जानसेवाले नारद मुनि से बढ़कर सन्धि, भेद श्रादि राजा के छः गुणों का प्रयोग जाननेवाला कोई नददीं है। मतलब यदद कि सन्धि-विम््द भ्रादि में उनसे बढ़कर चतुर शायद दी श्र कोई हो।। उनकी धीशक्ति ( चुद्धि ) श्रसाधारण है । शिष्यों को किस तरह “ज्ञान का उपदेश किया लाता है--'कर्म करने का ढड्न बताया जाता है-सो उन्हें श्रच्छी तरदे मालूम है।. गनयर्षों की नाचने-गाने की विद्या श्र युद्ध'विद्या भी वे श्रच्छी तरह जानते हैं। शासार्थ करने में वे देवगुरु बृहस्पति से भी निपुण हैं । न्यायशाख्न-अतिपादित--प्रतिज्ञा, देतु, उदाहरण झ्रादि से युक्त वाक्य के शुण-देप का विचार भी वे भलली भाँति कर सकते हैं । धर्म, थे, काम, मोक्ष के घारे में ठीक-ठीक सिद्धान्त स्थिर कर चुकने के कारण वे छतकृय हैं । उन्हें सब विथाश्ं का खज़ाना कदना भी भनुचित न होगा । उन्हें भूत-भविष्य की सब घटनाएं श्रोर विश्व की सब वस्तुएँ प्रत्यक्ष सी देख पढ़ती हैं। नारदजी विभिन्न श्रुतियों में एकवाक्यता प्रतिपादित करते हैं; फिर वे संयोग में भी मेद दिखला सकते हैं। एक कर्म में श्रनेक धर्मों का सन्निवेश करने में वे चतुर हैं। वे प्रयक् श्रादि प्रमाणों से प्रमेय को निश्चित करना धार वेदान्तविचार तथा योग का उपयोग जानते हैं। उन्हें सुरासुरों को युद्ध से रोकने की इच्छा रहती दे । सभा में वै हुए श्रीमाद पाण्डवों को देखकर नारदजी बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने हा जय श्रादि शुभ शब्दों से युक्त श्राशीर्वाद देकर धर्मराज युधिष्टिर का अभिनन्दन किया । देवर्षि को देखते दी भाइयों-सहित राजा युधिष्टिर जल्दी से भ्रासन छोड़कर उठ खड़े हुए | घड़ी नम्रता के साथ साष्टाह प्रदाम करके उन्होंने शुभ श्रासन दिया; फिर मधुपर्क, श्रध्य पादय, गाय, सुव्ग झ्रादि पथ कर उनकी यथाचित पूजा की | युधिष्ठिर की भक्ति घर श्रद्धा देखकर नारदजी बहुत प्रसन्न हुए । फिर वे झुशल-प्रभ के मिस से उनको घर्य-्रथ-काम का उपदेश करने शगे । पद ः ९, गौ श्श्न्द




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