Book Image : हिंदी महाभारत  - Hindi Mahabharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उद्योगपर्व ] १७१७ को छृताये करता !. सौर, मैं इस समय एक पुत्र पाने के लिए इसे अ्रहश करता हूँ। ये सब घोड़े छोड़ दे, मेरे आश्रम में चारों श्रार विचरें । महातेजस्वी विश्वासित्र थे इस तरह माधवी को अ्रहण किया | यथासमय साधवी के गर्म से उनके, श्रष्टक नाम से प्रसिद्ध, एक सहायशस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ । विश्वामित्र सुनि ने उत्पन्न होते ही उस बालक को धर्म-श्रश् की शिक्षा देकर थे थोड़े दे दिये । फिर वे माधवी को गालव के पास छोड़कर वन को चले गये | महाप्रतापी २० अष्टक चन्द्रलोक के समान शोभाशाली श्रपने पुर में जाकर प्रजा का पालन करने लगे । शपिश्रेप्ठ गालव, गरुड़ की सहायता से, इस तरह गुरु-दच्तिणा देकर बहुत प्रसन्न हुए । फिर उन्होंने भाधवी से कहा--हे सुन्दरी ! छुम्हारे गर्भ से एक दाता, एक शूर, एक सत्यवादी ओर एक याह्िक, चार पुत्र उत्पन्न हुए हैं। तुमने उन पुत्रों से अपने पित्ता की, चार पतियों की श्रौर मेरी रक्षा की । शव तुम अपने पिता के पास जाओ | श्रब बह कन्या राजा ययाति को संपकर शौर गरड़ से बिदा होकर महासुनि गालव वन को चल दिये । २४ एक सो बीस झध्याय राजा ययाति का स्वग से गिरना नारदजी कहते हैं--राजा ययाति अपनी कन्या का स्वयंवर करने के लिए उसे बढ़िया माला-कपड़े-गहने श्रादि से सजा करके बढ़िया रथ में विठाकर गड़ा-यमुना के सज्ञम पर स्थित श्ाश्रम में लाये |. पुरु 'ग्रौर यदु अपनी बदन के साथ उक्त झाश्रम में झाये । स्वयंब्रर की ख़बर पाकरे श्रलेक देश, पर्वत, वन आदि स्थानों से बहुत से मघुष्य, नाग, यच्ष, गन्थवें, संग शौर पच्षी उस श्ोश्रस में झाकर जमा हुए । बहुतेरे राजाशं और अरह्मतुस्य महर्पियों से वह आश्रम भर गया | किन्तु सुन्दरी माघवी ने वहाँ झसंख्य योग्य पात्र रहने पर भी उन्हें छोड़कर बन को पतिरूप से स्तरीकार किया] वे रथ से उततरकर, बन्खुओं को प्रशाम करके, चन में चली गई' छै[र वहाँ तपस्या करने लगीं ।. क्रमश: बहुत से उपवास, 'छीक्षा श्र नियमों के द्वारा राग-द्वेप झादि दूर करके उन्होंने मन को एकाग्र किया । बैडूय सखि के अंकुर सी 'रसम, कोमल, तीखी ौर मीठी घास खाकर श्रौर भरनों का पवित्र निर्मल शीतल जल पीकर, बाघ आदि- हिंसक जीवों से रहित, दावानल-ददीन, निर्जन वन में दरिणों के साथ हरिणी की तरह प्रमण करती हुई माधवी श्रह्मचर्य के ट्वारा श्रेष्ठ धर्म का उपार्जन करने लगीं । | इधर राजा ययाति भी अपने पुरखों के ढड्ड पर राज्यशासन करके कई हज़ार वर्ष के ;. बाद परलोकबासी हुए। पुय झर यदु से मद्दाराज ययाति के दे। नंश चले, जिनसे परथ्वी- र१७ ११




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