प्राचीन भारत के प्रसाधन | Pracheen Bharat Ke Prasadhan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्राचीन भारत के प्रसाधन  - Pracheen Bharat Ke Prasadhan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अत्रिदेव विद्यालंकार - Atridev vidyalankar

Add Infomation AboutAtridev vidyalankar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पहला अप्याय सृष्टि रचनाके प्रारम्भसे ही सभी देशों तथा प्राय समस्त युगोंके मानवोंमें प्रसाधनकी प्रवृत्ति पाई जाती है । एक त्यागी महात्मा जिसे दुनियासे कोई मतलब नहीं और जिसकी दैनिक आवश्यकताएँ बहुत ही थोड़ी हैं वह भी अपने शरीरकी ओरसे निरपेक्ष नहीं । वह नित्यप्रति स्नान करता है जटा-जूटको स्वच्छ करता है और उनको एक क्रम-विशेष से बाँधता है । अपढ़ और अविकसिंत व्यक्ति जिसका सारा जीवन शिकारमें जाता है वह भी शिकारमें मिली वस्तुओंसे अपने शरीरकों अछंक्वत करता है । नागरिक जीवनसे दूर जंगछमें रहनेवाछी कन्याएँ वनमें प्राप्त होनेवाछी वस्तुओंसे शरीरकों सजाती हैं । कविगुरु कालिदासके काव्य और नाटक की पावंती तथा शकुन्तलाका प्रसाधन बनलता और वनपल्लवोंसे दही होता था । शकुन्तलाने इच्तका वल्कल पहिने ही सम्राट दुष्यन्तके चित्तको आकुट्ट कर छिया था |. १ जाकुटिलाय्रेण स्कन्घावलस्बिना कुन्तलभारेण केशरिणसमिव गज- मदमलिनीक्तेन केशरकलापेनोप नेतम . . . . . . . . - - -- सुजगफणासणेरापाटले- रंशुमिरालोहितीक़तेन. पणंशयनाभ्यासलझपझ्चरागेणेव ... वामपार्श्वेन विराजमानस्‌ ... अचिरहतगजकपोलयूहीतेन सप्तच्छदपरिमलवा हिना कृष्णागुरुपछ्ेनेव सुरभिणा मदेन कृताज्रागम ..कादस्बरी कथामुख--- शवरसेनाधिपतिवणन । २ क. चौमें केनचिदिन्दुपाण्डुतरुणी माज्ञर्यसाविष्कतस । निष्व्यतश्चरणोपभोगसुकभो छाक्षारसः केनचित्‌ ॥-शाकुन्तछ ४1५ ख. कृत न क्णॉपिंतबन्घधनं सखे शिरीषमागण्डविलस्बिकेशरसू ॥ -शाकुन्तछ द1१८ ग इयमधिकसनोज्ञा वस्कलेनापि तन्वी किमिव मघुराणां मण्डनं नाकृती नाम ॥-शाकुन्तछ । १1१६




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now