सूफीमत साधना और साहित्य | Sufimat Sadhna Aur Sahitya
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.7 MB
कुल पष्ठ :
571
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ राम पूजन तिवारी बिहार प्रदेश के भोजपुर जिला अंतर्गत बड़हरा प्रखंड के गंगा तटवर्ती इलाके के परशुरामपुर गांव के रहने वाले थे। उन्होंने कठिन संघर्ष के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। डॉ राम पूजन तिवारी एक निम्न वर्ग के परिवार से आते थे। गांव में रहने के बावजूद डॉक्टर तिवारी ने अपने बुद्धि और विवेक के द्वारा कई किताबों की रचना की। आज के युवक उन्हें भूलते जा रहे हैं। इलाके के लोग आज भी उन्हें बड़े गर्व के साथ याद करते हैं। सूफी साहित्य के लिए विभिन्न सरकारों द्वारा उन्हें कई स्वर्ण पदक, सिल्वर पदक और ताम्र पदक से नवाजा है।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डा
द्वारा अपने आपको पहचान लेनेमें सब समय सहज भावनाका रहना
सम्भव नहीं ।
आरम्मके सूफी साधर्कोने वैराग्य भावना और तपोमय जीवनकी
सर अधिक ध्यान दिया | वे ध्यान, सुमिरन और नाम जापके द्वारा
अपने 'अई' को शुलानेका प्रयत्न करते थे, परन्ठ घीरे-घीरे उनमें प्रेमा-
भक्तिकी और झुकाव अधिक होता गया । विवेक और वैराग्यकी दृढता
केवल प्रेमसे दी सम्भव है । प्रेम-ततवके अभावमें वैराग्य और वियेक देरतक
टिक नहीं पाते । इतिशास साक्षी है कि साधना-पद्धतिपर दृढ़ विश्वास भी
किसी समय अहकार और दम्मका रूप धारण कर ले सकता है । अन्तर-
तरमें वैठा हुआ जीवन-देवता इस मार्गकी साघनासे असप्रक्त ही रह जाता
है । चद्द देख ल्या जा सकता है, पर प्रात नहीं किया जा सकता | यह
जो मनुष्यके चित्तमें निरन्तर उठनेवाली वासनाभोकी तरगें है, ये क्या
अम्तरतरमें वर्तमान मह्दान् जीवन-देवतासे बिल्कुल दी असपृक्त हैं ? क्या
ये मनुप्य-जीवनको चरितार्थ बनानेमे केवल बाधक ही बाधक है ?
उपरके स्तरपर दिखनेवाली लहरें क्या अतल गामीर्यमे स्थित जीवन-
देवताको बिलकुल नहीं छू. पार्ती ? क्या मनुष्य जीवनके साथ ही साथ
सचसुच ही परमात्माने काम; क्रोध इत्यादि दुश्मनोकी बहुत बड़ी पट्टन
ख़डी कर दी है ये शन्लु क्रिससे दुश्मनी करते है ? कया जीवन-देवतासे ?
या मनुष्यके अपेक्षाकृत उपरले स्तरपर विद्यमान बुद्धि, मन और दारीरसे ?
व्याकुल भावसे मनुष्य जातिके उन साधकों और सर्तोने जिनमें भावावेगकी
अनुल सम्पत्ति है, कत्प-लोक निर्माण करनेकी अद्भुत चक्ति है और
विभिन्न स्तररोपर खडे “व्यक्ति”-मानवॉके अन्तरतरमें समान भावसे स्फुरित
होनेवाले अद्वैत तत््वकों देखनेकी बाक्ति है, पूछते रहे है कि यह जो
मनु्यका राग है, जो पिपासा है, जो अपनेको दढित द्राशाकी तरह
निचोडकर किसीके चरणोंमें टरक जानेकी अवाध आकाक्षा है, वह क्या
मनुष्य जीवनकी न्वरितार्थताको रोक रखनेके ल्पए ही बनायी ययी है ?
यद्द सारा अनुभूति-चक्र क्या केवल विकार मात्र है ? सारे स्ेदन
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