चैतन्य की यात्रा | Chatnya Ki Yatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.11 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[पा श्रायमखाच-3 पस््स््य्स्य्य्स्य्स्य्य्य्स्य्य्य्य्य
2. अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़े
श्री सुपाश्द जिन दंदिए, सुख सम्पहि नो हेतु ललनर+
शान्त सुधा रस जल नीदि, भव सरणर सर सेतु ललनरध
चार दिशाओं में गमन करने वाला व्यक्ति जब पूर्व दिशा की
ओर बढ़ रहा होता है तब निश्चित है कि वह किसी दूसरी दिशा से
उस दिशा में वढ़ रहा होता है। जहाँ से वह चला होता है वह भी एक
दृष्टि से पूर्व दिशा हो सकती है पर यह विवक्षा होगी । प्रकट रूप से
तो वह पश्चिम से ही पूर्व दिशा में बढ़ता है । इसे एक रूपक मान कर
इसके निहितार्थ पर विचार करें। क्योंकि पूर्व दिशा सूर्योदय की और
इस कारण प्रकाश की दिशा होती है। परन्तु यह बढ़ना चार प्रकार
का हो सकता है-
(1) अंधकार से प्रकाश की ओर (2) प्रकाश से अंधकार की ओर
(3) प्रकाश से प्रकाश की ओर (4) अंधकार से अंधकार की ओर
हम तनिक विचार करें- मनुष्य अंधकार चाहता है या प्रलदह्
? पूछने पर यही उत्तर होगा कि प्रकाश चाहता है, अंधकार नहीं, पर
यर्थाथ इससे भिन्न है। यथार्थ में व्यक्ति प्रकाश चाहता नहीं है स्पसि
वह अंधकार में रमा हुआ है और अनादि काल से वह उसका उडी
हो चुका है, उसका पुनरषि-पुनरपि सेवन किया ईै. परिगस्स्वसप
अध्यवसायों में वह विषय इतना गहरा उतर गया है कि व उस्र
अलग कुछ देख नहीं पाता। कभी देख भी ले ना इस डा नहीं
होता। ः
कल्पना करें, एक तालाब है जिस पर जडानि पपागई डे; पर
शाफाश में सूर्य जथवा चन्द्र प्रमाशिन है नर डिस््डिसा ्क
शैयाल के नीचे रहने पाला प्रादी झएय को स्टा टम््र सह
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