संस्कृत साहित्य कोश | Sanskrit Sahitya Kosa

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Sanskrit Sahitya Kosa  by डॉ. राजवंश सहाय 'हीरा' - Dr. Rajvansh Sahay 'Hira'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जज़िरास्मूति ] (४ [ बयववेद विवि डिक: पट मं बाय-गुण विवेव एवं ४३वें अध्याय मे वाय्य दोपा का बर्षन है । युण के तीन भेद किये गए है-नयइगुय, बथयुय और दाद्दार्ययृण+ झाइगुण के सात भेद बह गए हैं-एशरेप, रारशिय, गाम्भीय, सुवुमारता, उदारता, सय और यथौरगिंगी । लय में ६ प्ररार है -माधु्य, संविधान, हामरता, उतारता, प्रीडि एवं सामपिकत्व तथा दादाथगुण के भी ६ नेट वरित है--प्रसाद, सीमाग्य ययाससर्य, प्रशस्ति, पार और राग । आधार पय - १ आननिपुराग--( अैंगरेजी अनुवाद ) अनुवादव एम० एन० दत्त । २ जन्तिपुराण--सपादरू जा चल्देद उपाध्याय । ३ अग्निपुराण दा दम्य- शास्त्रीय भांग--डॉ० रामलार वर्मा । ४ सम्दूत साहिय वा इतिहास-सठ वहैपाराद पोदार । ५ अभिपुराप ए स्टरी--डॉ० एस० डी० पानी । अट्लिगास्पति--दस ग्रय के रचपिता थॉद्धिरा नामव ऋषि हैं । 'यातवल्वय स्मृति” में अड्लिरा दो धस् परम्त्ररार मना गया है और जपराद, मेधानियि, हरदत्त प्रदति धम- दास्त्रिया ने भी इनके घमविपयद जनक तथ्या वा उन्टेव दिया है। 'स्मूतिर्चाद्रा से जगिरा के ग्यारा उपस्मृतियों दे रुप से प्राप्त हान है। जीवानद-सग्रह म 'अ्धिरास्मूि” में केवल ७० दरार प्राप्त हानि है। इसमे वर्शित विपया वी सूची इस प्रवार हैं-- जन्यजो से भोग्य तथा. पय ग्रहप वरना, मी के पीटने एवं चोट पहुँचाने वा प्रायश्चित तथा हिंत्रया द्वारा नीरवस्त्र पार वरने की विधि । नाधार ग्रय--वमशास्त्र वा इतिहास (खण्ड है ) डॉ० पी० बी० कागे, हिही अनुवाद 1 अयपेदेद--'अयव' का जय है 'जादू-्टोना' था 'अथर-वाणि तथा भपरवन्‌ को जय अग्ति-उद्ोबन करने वारा पुरोहित होता है। “अयववेद' के मूर से जादूगर और पुरोहित का नाव समाविष्ट है। इसका प्राचीन नाम अयर्वाश्रिस था । यह नाम उसवी हस्तरियित प्रतिया मे भी प्राप्त होता है यह गाद जयवं जीर बद़िरा इन दो दाब्दा वे याम में बना है जो दी प्राचीन ऋषिकुठ हैं । साचार्य ध्टूमफीटट के अनुसार मयवगाद साह्दिद मंत्र वा पर्याय है निसने उत्तम विधिया का सरेत प्राप्त होता है तथा भद्धिरस दाद तामस मत्ा का पर्याय है, नो जादून्टाना एवं आाभिवारिव विधिया बा प्रपीव है। पहठे ववराया ला चुदा है रि बैटिव पर्मेदाण्ड के संचारन के शिए चार ऋषिजों को आावध्ययत्ता पढ़ती थी [ द० बैदिय सहिता ]। उनमें सर्वोधिर महत्वपूर्ण स्यान सह्मानामव ऋत्विज का था । वह तीनों वेदो दा. लाता होता था, विस्तु उसदा प्रधान वेद 'लवववद' था । स्वय “ऋग्वेद” मे भी “यनेरयर्वा प्रवम पयम्तते' ( शददे।५) कह कर अियवयद' दा. महत्व निदिष्ट है, पिसते इसी प्राथमिकता के साथन्ही-माथ प्राचीनठा की भी सिद्धि होती है । 'गोपयन्राहमण” में बनराया गया है दि तीन बेदा से यंत्र का वेवठ एक्पसीय संस्कार होता हैं, पर श्रह्मा के मन से यन के दूसरे पत्र का भी सस्वार हो जाता है ( गो० ब्रा० ३1२ अधव-परिधिष्ट में इस प्रवार वा. विचार व्यक्त विया गया है दि जिस राजा के राज्य




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