ग्वालियर जैन निदेशिका (१६६९) अ क ४३१५ | Gavaliyar Jain Nideshika (1669) Ac4315

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३) उत्तर पश्चिम समूहः--इसमें लादिनाथ की एक सहत्वपूर्ण मूति बनी है जिस पर स० १५२३७ का मभिलेख अकित है । (४) उत्तर पूर्व समहः:-- इसमें भी छोटी-छोटी मूतिया है । उन पर भी कोई लेख नहोने से ऐतिहासिक हृष्टि से अधिक महत्व नहीं रखती हैं । (५) दक्षिण पूर्व समृह्:--इस समूह की मुर्तिया कला की हृच्टि में अत्याधघिक महत्वपूर्ण हैं । ये सूतियाँ फुलब्राग के दरवाजे से निकलते ही लगभग आधे मील के क्षेत्र में खुदी हुई दिखाई देती हैं । अन्य मूर्तियों की मणेक्षा कुछ बाद में बनने के कारण ये अभ्यस्त हाथों द्वारा निर्मित हुई है । अत इनमें कला का रूप निलर उठा है 1 इस समूह में लगभग र० प्रतिमा २० से ३० फूट लक की ऊंब्राई की और लगभग इतनी हो ८ से १४ फुद की ऊचाई लिये हुए है । इनमें अ'दिनाथ, नेमिनाथ, पदप्रभु, चन्द्रप्रमभू समवनाथ, कुन्यनाथ, और महावीर भगवान की मूतिया हैं । इनमें कुछ मूर्तियों पर सम्बत १५२४५ से १५३० तक के अभिलेख सुद्दे हुये है । इनके अतिरिक्त तेली की लाट के पास तथा यूजरी मठल मप्रहालय में रखी प्रतिमाये भी इनकी समकालीन प्रतीव होती है । इससे प्रतीत होता है कि उपरोक्त समूहों के अतिरिक्त अन्य प्रतिभाओं का भी निर्माण हुआ था । ग्रन्थ निर्माण व सृ्ति प्रतिष्ठायें :--- कीलिसिंह के शासन काल में ही कुशा साह जी जैसवाल वंशज ने गोपाचल पहाड़ी के बाहरी तरफ कुछ गुफाओं में मूर्तियां खुदवाई, तथा मन्दिर बनवाकर प्रत्िष्ठायें करवाई जिसमें लाखों शपये ब्यय हुये । वि अग्रव,ल वंशज गोयन गोत्री खरा नामक धर्म प्रेमी एवम आम ममंज्ञ सज्जन मे भी गोपाचल के बाहरी ओर गुफा-मन्दिर बनवाकर आवाप महीचस्द जी महाराज द्वारा प्रतिष्ठा करवाई । सन १४५८ में बावषी की ओर गोयालारे यशज शुमूदचन्द ने पाश्वेनाथ की मूति की प्रतिष्ठा भट्रारक सिडकीति के सहपोग से करवाई 1 सन १४६८ में ग्वालियर के जेमसवाल ुल सुधण उल्हा साहू के जेष्ठ पुत्र साहू पदर्मामह ने अपने चचल लक्ष्मी का उपयोग करने के लिये २४ जिनालयों को निर्माण करवाया तथा १ लाख ग्रन्थ लिखबाकर भेंट किये ।* इनके राज्य काल में जैन साहित्य रचना का भी कार्य हुआ । कविवर रईघू ने इनके राज्य काल में सम्पकव-कौीमुदो” तथा. “खावकाचार'' की रचना की । उपरोक्त स्दिरों में से कुछेक समाप्त हो गये हैं और कुछ का जीणद्धार होकर नये मन्दिर श्रन गये हैं जो अभी भी म्वालियर में अपने परिवतित रूप में स्थित हैं । साहित्य में अधिकतर भाग नष्ट हो गया है बहुत कम ही शेप है । सन १४६४ में “ज्ञान, णंब' नामर ग्रत्थ को एक प्रतिलिपि, लिपिवद्ध की गई ।*ै भट्टा० गुगभद्र ने भी ग्वालियर निवासी जैन श्रवको की प्रेरणा से अनेकों कथाओं की रचने) की । कल्याणमलर :--- कीतिसिह की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र कह्याणमल (मह्लिह) ने शान की बागडोर संभाली इन्होने सन्‌ १४२४ से सन्‌ १४२९. तक ही शासन किया ।. संभवत: अपने शासन काल के ७ व्धों में इन्होंने कीतिसिंह के कार्यों को 'जो अधूरे थे' पूर्ण किया ७ बनना पल १. विज्जुल चंचलु लच्छीसहाउ, आलोइविहुड जिणधम्ममाउ । जिणगथु लिहाव3 लक्खु एकु, सावय लकषखा हारीति रिक्लु । मुणि भोजन भुंजाविय सहासु, चउवीस जिणालउ किउ सुभासु-- उन प्रन्थ प्रशस्ति सं० पृ. १४४ बाराबकी शास्त्र मण्डार । रे. यह प्र्य जैन सिद्धान्त भवन आरा में उपलब्ध है । ग्यालियर--प्रतीत की दृष्टि में ध




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