सवाई जयसिंह | Savai Jaysingh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.45 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साक्षात्कार और निराशा क 0 कर वह अपनी आंखों से शाही शिविर की दुरव्यवस्था देख आया धा। इससे अपने राज्य की स्थिति सुधारना उसे और भी आवश्यक लगा। उधर औरंगजेब इस बात पर जोर दे रहा था कि जयसिंह उसकी सहायता के लिए तुरंत दक्षिण चला आए । उसने लिखवाया था कि जयसिंह को अपने मनसब के अनुसार निर्धारित संख्या से भी दो हजार सैनिक अधिक लेकर आना चाहिए। वहां मराठों ने मुगल सेना के छक्के छुड़ा रखे थे। ऐसी स्थिति में आमेर की सेना और राज-कोष दोनों में ही तुरंत अभिवृद्धि की आवश्यकता थी। और जयसिंह को यह सारा प्रबंध अपने आप करना था। औरंगजेब हाथ बंटाने की स्थिति में नहीं था। शाही सेना को ही कई मास से पूरा वेतन नहीं मिल सका था। इसी बीच जयसिंह का एक और विवाह मार्च 1701 के लिए निर्धारित हो गया । इस सबसे निपटने में थोड़ा समय लगना ही था । लेकिन अपनी विगड़ी हालत और ढलती उम्र में औरंगजेब को दूसरों की जरा भी परवाह नहीं रही थी । देर होती देख वह बार-बार जयसिंह के पास कड़े हक्मनामे भेजने लगा। आखिर 17 नवंबर 1700 को जयसिंह चलने पर विवश हो गया । मार्ग में दस दिन के लिए उसने भलारना में पड़ाव डाला । इन्हीं दिनों स्यौपुर के उद्योतसिंह गौड़ की पुत्री आनंदकुंवर से उसका विवाह संपन्न हुआ । मधुरा तक जयसिंह की मां भी उसके साथ थी । मथुरा पहुंचकर उसने 2 000 ब्राह्मणों को भोज दिया। जयसिंह के समाचार औरंगजेब तक बराबर पहुंच रहे थे। जयसिंह लंबे रास्ते से दक्षिण की ओर बढ़ रहा था। 5 अगस्त 1701 को जयसिंह बुरहानपुर पहुंचा । भारी बरसात के कारण उसे वहां एक महीने तक रुकना पड़ गया। अपने आदेश की अवहेलना से औरंगजेब का गुस्सा भड़क उठा । उसने जयसिंह का मनसब घटाकर 500 का कर दिया और आमेर के प्रतिनिधि को भी अपने दरबार से निकाल दिया। अक्तूबर में जयसिंह औरंगाबाद के शाही दरबार में हाजिर हुआ। औरंगजेब बहुत ही नाराज था। पहुंचते ही उसने जयसिंह के दोनों हाथ पकड़ लिए और कहा बोल अब तू क्या कर सकता है ? कोई दूसरा होता तो ऐसे नाजुक मौके पर अपना संतुलन खो बैठता पर जयसिंह डरा नहीं । उसने हाजिर-जवाबी से काम लिया । बोला शहंशाह अब मैं सब कुछ कर सकता हूं। मर्द औरत का एक हाथ पकड़ने पर ही उसे बहुत सारे अख््तियार दे देता है। हुजूर ने तो मेरे दोनों हाथ पकड़े हैं। अब मुझे कोई डर नहीं है। जयसिंह के जवाब से औरंगजेब का गुस्सा गायब हो गया। वह तख्त से उठा और जयसिंह को खिलअत दी। लोग कहने लगे-इसकी बातें सुनकर तो भरोसा होता है पर उम्र देखकर डगमगा जाता है। बादशाह ने जयसिंह को अपने प्यारे पोते शाहजादा आजम के पुत्र बेदार बख्त की सेना में नियुक्त कर दिया। उसका मनसब भी पहले की तरह 1 500 का कर
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