सारधा त्रप्रचार की चोपाई | Sardha Traprachar Ki Chopai

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Book Image : सारधा त्रप्रचार की चोपाई  - Sardha Traprachar Ki Chopai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३) रंगा चंगा ने डील सदूरा रे, लोही मांस वधावण रूड़ा रे । लिया ब्रत न पाले पूरा रे, ते शिव रमणी हा. दूरा॥ २॥ चांपीचांपी ने करे आ्दारो रे, डील फटे ने वधे विकारों रे। त्यांरी देही बे आाडी ने ऊभी रे, साथल पिंड्यां पढ़ जाये जाड़ी रे ॥ दे ॥ धृत दूध दही भीठो भावे रे, कारण बिन. मांगी लयावे | जुदा ल्यावे तु जणाई रे, ए तो पेट भरण रो उपायो ॥ ४ ॥ कोरो धत पीवे बिधारी रे, आ' जुगत नहीं ब्र्मचारी। मर्यादा बिन करो आहारो रे, तिल लोपी भगवन्त कारो ॥ ४ ॥ हाक ताक जावे घर ताजा रे, साधु मेष लियो नवि लाजे। घर घर जाये पड़थों मांडे रे, नहीं दियां भाण जिम भांडे ॥ ६ ॥ दातांरां करे गुण ग्रासो रे, पाड़े नहीं दे हियरी माभो | करे गुइस्थ आगे बातो रे, नहीं देवे वहरावे त्यारी करे बातो ॥ ७॥ श्रावक श्राधिकां उपर ममता रे, शिष्य शिष्यणी री नहीं समता | मू'ड़े बले काल दुकाल, त्याह्' अत ने जावे पाल्या ॥ ८ बान्घ्या थानक पकड़ा ठिकाना रे, मुहस्था सु' मोह बंधानां | सुख सिलिया साता कारी «रे, इव्या साथ रो मेष घारी ॥ & ॥ ए. लक्षण इुगुरुआंरा जाणे रे, उत्तत नर हृदय पिछानो। देव गुरु में खोटा लिम धारथ रे, तिशरे छे संतार ज्यादा ॥१०॥,_ एवा में गुरु करने पएूजे रे, समक्रिति विन संबो न हमने ।. तिणरो छे भारी कर्मों रे, ते किम ओलखे जिन धर्मों ॥११॥- कुगुरां री काली पषपातो रे, त्यां ने न्याय री न गर्ें बातो । बुध उलटी न मठ मिठाती रे, साधु वचन सुन्यां बले छाती ॥१९॥ धनावी सेठ बेटी ने खायो रे, कुशले राजगिरी आयो। इम करसी साधु आदारो रे, तो पहुचसी मुक्त मंकारों ॥१३॥,.




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