जेल से लिखे गए पत्र एवं अन्य लेख | Jel Se Likhe Gae Patr Evn Anya Lekh

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Jel Se Likhe Gae Patr Evn Anya Lekh by देवेश चन्द्र - Devesh Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जाते हैं। मुझे इन सभाओं में से किसी में भी भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई किंतु मैं जानता हूं कि यह बहुधा ढक्नोसला भर होता है। मैं यह नहीं कहना चाहता कि उपदेशक ढोंगी होते हैं। किंतु सप्ताह में एक बार कुछ मिनटों की धार्मिक चर्चा का उन लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता जिन्हें साधारणता अपराध करने में कोई बुराई नहीं दिखाई देती । आवश्यक यह है कि ऐसे सहानुभूतिपूर्ण वातावरण का निर्माण किया जाए जिसमें कैदी अनजाने ही बुरी आदतें छोड़ें और अच्छी आदतें सीखें। किंतु जब तक कैदियों को बहुत अधिक उत्तरदायित्व के कार्य सौंपने की प्रथा कायम है तब तक ऐसा वातावरण उत्पन्न होना असंभव है। इस पद्धति का बदतर भाग है कैदियों को अधिकारियों की तरह नियुक्त करना। बहुत लंबी सजा पाए हुए कैदी ही ऐसे पदों पर नियुक्त होते हैं । अतः ये ऐसे ही लोग होते हैं जिन्हें किसी अत्यंत गंभीर अपराध करने पर सजा दी गई होती है। बहुधा क्रूर स्वभाव वाले कैदी वार्डर बनाए जाते हैं। वे अत्यंत टीठ होते हैं ओर आगे आने में सफल हो जाते हैं। कारागारों में जितने भी अपराध होते हैं लगभग उन सभी में इनका हाथ होता है। ऐसे ही दो वार्डरों में एक बार सबके देखते लड़ाई हुई और उनमें से एक व्यक्ति मारा गया । लड़ाई का कारण यह था कि एक ही कैदी उन दोनों की अप्राकृतिक कामवासना का शिकार धा। सभी जानते थे कि जेल में क्या चल रहा है किंतु अधिकारी केवल इतना ही हस्तक्षेप करते रहे जितने से लड़ाई अथवा खून-खराबी भर रुकी रहे। ये कैदी अधिकारी ही दूसरे कैदियों को किस काम पर लगाया जाए इसकी सिफारिश करते हैं। ये ही उनके काम की देखरेख भी करते हैं। वे अपने अधीन कैदियों के सद्व्यवहार के लिए भी 15




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