याकुती तख्ती | Yakutee Tkhti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१४) याकूृतीतख्ली | दूसरा चल ना किन न नी पिया पी पर सता से आप लिपि विवि वि व अं अं ही 2 ने न .# नानी पलटा की पाली जी पी हवा हमाद। या अबदछ का इस कष्ट का मार कर ध्यानही ने था यानी उनके लय कुछ था ही नहीं । तप सच जाना. उस अफरीदी यवचती की कच्ट- साइष्णता के आग ।खिक्ख हाकर मी मेने हार मानी मने हसकर कहा -- निहालासह | यह ता बड़े आसंद की बात तुमने सुनाई । क्योंकि स्त्री पर विदाष कर यवती स्त्री पर. विजय पाने का इच्छा करना ता कापरुषों का काम है । क्योंकि बीर परुष तो सदा स्त्रियां स हार मानन महा अपना बड़ा घगे ससझत है । निदालासह इस बक्ाक्ति का कछ उत्तर न देकर कहने लरो निदान आधीरात तक चलने के चाद हमीदा एक पहाड़ी गफा के पास पहुंच कर ठहर गई और बाली.-- वहादर जवान आपने मरे लिये जो कुछ तकली फ़ गवारा की इसके लिये में आपका दाक्िया अदा करती है| बस अब आपके ज़ियादह तकलीफ़ करने की कोई जरूरत नहीं है इसलिये बाको रात आप इसी ( उंगछी से दिखलाकर ) खोह में बितावे आर सुबह होन पर अपने पड़ाव की ओर चले जावे । यहांखे मेरा किला चहुत नज़दीक हैं चुनांचे अब में बेखटके वहां तक पहुंच जाऊंगी । इसके बाद उसने अबयदलू को आज्ञा दीकि -- खोह के अन्दर सखे पत्ता का बिस्तरा बिछादे यह सन और एक जलती लकड़ी हमीदा के हाथ में देकर अबदु उस खाह के भीतर चला गया और उसके प्रवे् द्वारपर हमीदा मरे सामने खड़ी रही थोड़ी दर चप रहकर हमीदा ने हाथ की जलती लकड़ी ऊंचीकर आर अपन कमर तक लटकते हुए काले काले घुंघराले बाला को सहदपर से हटाकर मेरी आंखों से आंखें मिलाई ओर बड़ी कामलता से कहा+- अजनबी बहादर आजके पदतर मेने आप पऐसे बहादर को कभी ख्वाब में भी नहीं दखाथा किजो अपने ऊपर इतनी तकलीफ उठाकर भी अपन दमन की दखतर पर _ इतना रहम करे । गो अभी मेरी उम्र अठारह बरस से जियादह नहीं हृई है लेकिन इन्सान की कदर में बख़बी जानती है । आह । आपन जान कर भी अपने दुदप्न की लड़की पर इतनी मिहरवानी की जितनी कि हिन्दुस्तानियों से पानी गैरममकिन हैं। लेकिन मझे अफ़्सोस हैं कि आप एसी ख़रस्लत के हाकर भी हम लोगो की आजादी पर नाहक तंदवार उठाए इए हैं । बड़े अफ़्सास को बात है कि जंगल पहाड़ों में रहन घाले दइमलोगो की. आज़ादी पर नाहक आप लोगों को रदक दाता है




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