धरनी दास जी की बानी | Dharnee Das Ji Ki Bani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.21 MB
कुल पष्ठ :
70
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खिताघनी गे लीला श्र
जना चारि श्गये वहाँ ते उठाये ।
घ्यणिन में जराये नदी में बहाये ॥४०॥
पिन््हाये कफन खादि खादे गड़ाये ।
दीवान साहब सलामत को श्ाये ॥४९॥
प्रयोधो न पाँचो बहुत नाच नाचे ।
कला खेलि खाली चले इन्द्रजालो& ॥४२॥
उद्ाँ घर्मेराया चितरगुप्र छाया ।
जहाँ पत्र देखा सुकत की न रेखा ॥४ ३॥
नहीं नाम गाया नहीं जीव दाया ।
भगति की न भेवा नहीं साथ सेवा ॥४४॥४
जुस्त जन्म हारे बे गुरु के बिचारे ।
भुलाने झनारो परो बीचि भारी ॥४४॥
गये यहि प्रकारा कितेका भुवारा1 ।
शवर जा बेचारा करे का ससारा ॥9६॥
गये कौरवों श्ौर सिसुपालु रावन
गये छप्पनो काटि जादव कहाबन ॥४७॥
गये चक्ठुवे चक्रबतों कहाये ।
गये मंडली कोाउ संदेखे न पाये ॥9४८॥
गये साकबंधी सका बाँघचि केते ।
ते साठी सिले बीर बलवान जेतेत. ॥9९॥
# काम क्रोध श्रादिक पाँच टूत के सका नहीं घल्कि इस्टीं का नाच
नाखते थे से मरने पर पऐसाही इश्ना जैसे कि इस्ट्रजालवाला तमाशा
कर के लल देता है। 1 भुवाल--राज़ा। पु ऐसे राजा जिन का शाक खत्ता
है और शूर बीर धूल में मिल गये ।
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