सत्य की खोज में | Satya Ki Khoj Mein

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ सत्य की खोज में यह हमें इस भौतिक संसार से परे एक ऊँचे ससार की ओर ले जाती है । संभव हे एक व्यक्ति नैतिक नियमों और धर्म का पालन करता हो परन्तु जब तक उसे यह आशा और विद्वास नहीं है कि यह विश्व एक आध्यात्मिक दिशा में जा रहा हें तब तक हम उसे धारमिक नहीं कह सकते । धर्म वास्तविक सत्ता का वह ज्ञान हैं वह अन्तदंष्टि हे जो न केवल हमारी कम या अधिक शक्तिशाली बौद्धिक प्रेरणा को संतुष्ट करती है अपितु जो आत्मा के वास्तविक गौरव की अनुभूति के लिए और इसकी सुरक्षा के लिए दाक्ति प्रदान करती है । इस ध्येय की प्राप्ति के लिए आध्यात्मिक साधना एवं नैतिक नियमों के पालन की आवइ्यकता है। भगवान्‌ के दर्शन के लिए हृदय को दद्ध करने की आवश्यकता हू । सत्य ज्ञान के लिए पाण्डित्य की नहीं बाल-सुलभ सरछ- हृदयता की आवश्यकता है । मन के पवित्रीकरण की प्रक्रिया में हमें अपने आचार का विद्वेष रूप से ध्यान रखना होगा तभी हम भगवान्‌ के चरणारविन्दों में पहुँच सकेंगे । जब लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है आत्मा प्रकाशमान हो उठती है और समस्त जीवन को जगमगा देती हे चरित्र को ऊँचा बनाती और शक्ति से भर . देती हैं। हिन्दू धर्म की चाहें जो भी कार्येपद्धति हो हिन्दू धर्म को अलौकिक या पारलौकिक नहीं समझा जा सकता । इसके अनुसार धर्म का उद्देश्य भगवान्‌ का ज्ञान प्राप्त करना या उसके दन करना है और आचारशास्त्र का उद्देक्य मानव-जीवन को अदृश्य शक्ति के अनुरूप ढालना है । ये दोनों परस्पर संबद्ध हें । अनन्त आत्मा में विश्वास इस आदशें का प्रेरक है । यह न्यायपरायणता और पवित्रता के प्रति प्रगाढ़ प्रेम द्वारा अभिव्यक्त होता है ।




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