ब्रह्मचर्य का विघ्न और ग्राहकों का कर्तव्य | Brahmachary Kaa Vighna Aur Graahakon Kaa Kartavya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २८ ) इसको संयमके द्वारा आधीन किया जावे । परंतु आजव छकी अखबारी दुनियाका प्रवाह इसके सवेधा विपर्रातही है । गुरुकुछोंकी स्थापना श्रह्मचयंके लिये है वेदिक धर्मके सत्सेगोंकी योजना ब्रह्मचयंके लिये है इन बातोंकी जागृति भी अखंड त्रह्मचये धारण करनेवाले योर्गाराजकी ही की हइ है तथापि उनके कायकों चलानेवाले अखबारोंमें भी कामात्तितक दवाइयां मोजद हैं और इसका विचार कोइभी नहीं करता । देखिये कितनी विपरीत अवस्था हागड है | कामबविकार न बढ़नेकी अवस्थामें भी कितना व्यभिचार चल रह हैं । एसी अवस्थामें चारगुणा अथवा दसगुणा काम अढ गया तो कया अवस्था होगी इसका विचार विद्वान सविचारी पाठक ही कर सकते हैं । (९ ) इन विज्ञापनॉका दुष्परिणाम |... कहे विज्ञापनेंकी भाषा गंधी हे।ती है परतु कहयोंकी भाषा बड़ी सम्य होती है परतु शब्द ऐसे रख हेति हैं कि सबको अंदरका तात्पय समझें आ जाय । इन पिज्ञापनों के। अज्ञान तरुण पढत हैं और दवाइयां मंगवार ऐसे प्ले हं कि उनका वर्णन करना भी कठिण कागे हे । इस इड्टिहार बाजीक कारण भंकड़ों तरुण ऐसी अवस्थामं जा पहुंचे हैं कि नहांसे घापस नहीं आसकत ओर इस पापकें घनी विज्ञापनदाताही नहीं ह परतु अखबारोंके लोमी संचालक मी हैं जा अपने कतेव्याकों भूलत हुए प्राहकांके ख़नसे भर हुए घनस अपने भोग बढाते रहते हैं और मावी संततिके ब्रह्मचये अ्टताकि पापके पहाडोंमें आनंदस विचरते हैं।




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