महावीर का जीवन-दर्शन | Mahaaviir Kaa Jiivan Drashan

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Mahaaviir Kaa Jiivan Drashan by रिषभदास रांका - Rishabhdas Ranka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महावीर का जीवन-दड्शेंन ---<>< ६ ~= -- स्वरूप से अनभिज्ञ लोग संसार में बहुत लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपने स्वरूप का ज्ञान नहीं होता । वे कहाँ से आए और म्रत्यु के बाद करी जवेगे इसकी भी उन्हें कोई कल्पना नहीं होती । उनमें जो आत्मा है उसका पुनजन्म होगा या नददीं यह मी वे नही जानते | उन्हें यह भी माद नहीं कि वे इस तरह जन्म-मरण के फेरे क्यो करते रहते हैं और उन्हें संसार में सख-दुःख क्यों भोगने पड़ते हैं | जिज्ञासु आत्मार्थी लेकिन कुछ आत्मार्थी पुरुष ऐसे भी होते हैं जो अपनी सद्दज स्मृति या अनुभव से अथवा अन्य भनुभवियों से इस बात की जान- कारी प्राप्त करते हैं कि उनका स्वरूप क्या है । और इस शझारीर में जो आत्मा है, वह केसे सत्‌ यानी नादान होने बाला, आनंद रूप और ज्ञानयुक्त है और कम-बन्घनों के कारण वह भिन भिन योनियों मे क्य जन्म-मरण करता हे | अपनी वत्तियों से उसे यह ज्ञात होता है कि चहद किस प्रकार के शरीर को त्याग कर आया है इस शरीर को त्यागने पर किस अवस्या को प्राप्त होगा । ये जन्म- मरण के चक्कर उसे अपने द्वारा किए. हुए कम-बन्धनों के कारण करने पड़ते हूं । और झुद्ध चैतन्प को आनंद तया सुखरूप होने




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