मोनोविज्ञान माला प्रेम और विवाह | Manovigyan Mala Prem Aur Vivah

Manovigyan Mala Prem Aur Vivah by गंगाप्रसाद

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चेन घौर वियाद श्द पद्धति दो इस मिथ्या भावना से झोत-प्रोत है कि 'विपय' एक संदिग्ध पापाचार और पाशबिकता है, 'और इस सम्बंध में एक रदस्य-पूरण' चुप्पी साघे रददना दी शिष्टता है । धर्चों को जीयन फे इन मौलिक सत्यों से 'अवगत फराने के सुन्दर से सुन्दर झवसरों पर भी इम एक दिखावटी गम्भीरतां की मुद्रा धनाए रदते दें । ऐसे माता-पिता भी, जो जीवन के अन्य सभी क्षेत्रों में ठोस दृष्टिकोण से काम लेते है, श्पने वरच्चों के सामने पेम श्रीर सूजन फे सरल व्यापारों की व्याख्या करने में दिचिक जाते हैं । शिक्षक, जो इस कत्तंव्य का पालन 'छासानी से कर सकते हूँ, माता-पिता के विचारों को ठेस पहुंचाने के भय से, घुप रद्द जाते हैं । डाक्टर भी जो सम्भवतः माता-पिता के बाद इस कार्य के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं, या तो 'छाव- श्यकता से '्धिक व्यस्त हूँ या इस विपय के साथ न्याय कर पाने की योग्यता दी नहीं रखते । जीवन के थ्ारम्भ से ही में 'लने, बोलने, अभिवादन करने तथा क्रायदे से कपड़े पद़िनने की शिक्षा दी जाती है । ज्यों ही दसारी स्कूली पढ़ाई की पदली सीढ़ी समापन होजाती हे हमें खेलने; साईकल 'चलाने, लोगों से मिलने-जुलने तथा 'झन्य सामाजिक शिष्टाचारों की शिक्षा दी जाती दैं । जीविकोपाज॑न करके हम अपना निवादद कर सफें, इसके लिए तरह-तरदद फे उद्योगों की शिक्षा भी हमें दी जाती है। परन्ु शायद दी कोई. ऐसा स्त्री या पुरुप दो जिसे किसी कुशल शिक्तर द्वारा इस बात




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