ग़ज़ल संग्रह भाग 1 | Gajal Sangrah vol - I

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Gajal Sangrah vol - I by गोविन्द सिंह ठाकुर - Govind Singh Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'कसकिकिवेदी-िफे- कट ली. दा, बैनर दि, दर, ेद, कील ।.5:8.5 6; है. कक, ही... उ>सयमनमाग ८ १ - गसल २७ 1 सरते दमन जिसकी जुदपर सास ईश्वर अणिया । बेघड़स हो वोटह्ी जने बैकेंठ को सीघागया या : छोड स्ायाजाल जिसने नाम परयइवर रटठा । छूटा आवागप्त उसका ये वे! पढदुची 'वोगया | | जो विमूुख उस सामसे हग्श सम उसका भी ट्वाल। नौॉँघरर पमदूत उसकों नें थे लेजायगा ॥ जो गया दुनियां से बफेर उसझा पता पाया सही 1 2 । खाई घरती या बम्बः टूद उसको खांगया पा ! जिसका सोइुनलाल कुछ घर्ती 'दू्याएँं ध्यान हु 1 पाकें पदवी स्वगक्की दो होके बेपरवा मैया ॥ | दल ': गजल ॥२६॥ ; रा इंडवर मा छलका जो बशर अपने लटाले- हूं । $ तो कछ च्ानन्द इस ससार का बोर उठाते हैं ॥ | बढ़ी पदवी उन्हें मिलती हे इस संसार सायर सें । .) कि जो हस्ती को च्मपदी राह हेडचर में मिटाते :हूं॥ नजर इस जहूर उलका.हरएक ज़रंम आता, दे, हुरएक॑ जन जों कि ।जिलकों तीरथां से कूद चात-द्द का _ 4 जो जन. सक्तीमें उसकी जानो तनमपना लगाये हूं: । कै». जहाँ चाई दुर्श फिर वो वहीं बस उसका पाते 'गिरंदा' तीनों पतन गफलतलद्दी गफलत मे गये तेरे । | रहें दें दिन जो बाक़ी ये भी न्मब बेकॉर जतिना :




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