मुक्ताबली | Muktavali

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Muktavali by राधास्वामी ट्रस्ट - Radhaswami Trust

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र राघाखामी गुरु समरत्थ, तुम बिन और न दूसरा । अब ' करो दया परतक्त , तुम दर एती बिलव क्यों ॥ ७9 ॥ ॥ दोददा ॥ दया करो मेरे साइयों, देव प्रेम की दात । दुख सुख कह ब्यापे नहीं, छू सब उत्पात ॥ ८॥ न शब्द (६) दर्शन केसे पाऊँ घट में, यह तो बात कठिन अति भारी । टेक । सतसँग कहूँ नेम से निप्त दिन गाऊँ महिमा चरनन छिन दिन, १' प्रकट'। २ ' देर ।' ३ साड़ा, कष्ट । ४ भ्रन्तर में




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