नाट्यकविता संग्रह | Natyakavita Sangrah

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Natyakavita Sangrah by विष्णु अमृत भावे - Vishnu Amrit Bhave

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(२) व्यान ॥ आजवरां भाह्मा जाण ॥ २९ ॥ भवब्रघने तुटाया ॥ ध्यान तुझं दवराया ॥ ३ ॥ नटवुना नाना वष | ग्राऊ तुझ्यारे लीलेस | ४ ॥। [विष्णदास ह्मण दवा ॥| हत माझा पणं व्हयझ ॥ % || ॥ अभग ३ ॥ सत्यसत्व प्राहू छळी भगवान ॥ अती सां लागून सुख देत ॥ १ ॥ शुद्धभावे ज्यांणीं हरी आकळीला ॥ स्तरये दास्य त्यांचे अंगीकारी ॥२॥ आहे सद्हरी भावाचा भूकेला ।॥| कदां अतरय्यांनतो देयी ॥३ ॥ [विष्पूदास झ्मणे स्मरा हरीप्राय.|॥ तेण सद्य होय दास तुमचा ॥ ४ ॥ ॥ अभग 9 ॥




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