सांजवात | Saanjavaat

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[ वृत्त द. वि. ] रसिक-रंजनि मंजुळभाषिणी करित मी चतुरे तव योजना त्वरित गे ललिते मधुहासिनी हरुनिया श्रम तू रिझवी मना. हसुन गाउन तूं मधु गीतिके विसरवी क्षण या कटु जीवना रसिक मानस तू मधु चंद्रिके विहरुनी करि असृतसिंचना रासिक कीं जमलेच मिलिंद हे सहज तू खुमनासम कोमला मिसळुनी स्वनभावरंग हे तव हदी मधुसंगम जाहला कर सखे मधुसिचन माधवी नच परी करि गे काथे वंचना !




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