रत्नसमुच्चय | Ratnasamucchya
Book Author :
Book Language
मराठी | Marathi
Book Size :
52 MB
Total Pages :
858
Genre :
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विज्ञापन.
॥ अंथ वत्तैघान आचायोके करणे योग्य कत्तेव्य ॥
॥ प्रथम तो श्राचार्य जातिवंत रूपघंत लर विद्यावंत सुशी-
कद्दी द्ोणा चाहिये, चाहे शाचार्येका शिष्य होय चाहे सक्त लक्क-
णवाला इसरा कोई होवे, यह सव संघकी सम्मतीसँही होणा,
' केर इमला शाखाज्यासी दोणा, बहोत प्रमादवत नहीं होणा, देश
झेत्र काल जाव सुजब सदा यछछी लारसंञालसें जेनधर्मके दीप-
क दोण्या, वेजा चण यतीयोका इटकणा, चनोके सन सुजब'
नदी चलणे देणा, लांडित पुरुपकी संगत नदी करणी, चव
काल प्रतिक्रमण करणा, असकके त्यागी) होणा, सूरिमंत्रका नित्य
जाप करणा, देवदर्शन चर झापनार्चायादि पसिल्ेदण्य करणा, जती
जतखीकू शु परंपरागम वेष सर संघ तारी करे एसे सारगमें
प्रवत्तांशा, इल परांत जो श्राझा'न माने घसकूं गणाद्दही करणा,
स्वार्थके वश कसूरदारका पक्कपात न करणा, अडे सुद्ील पंमसितो
की सोहबत करणी, कमावत झी दोणा, समय झी सोचणा, घ-
पदेरा करण हुसियार होणा, उपाध्याय वाचकादिपद योग्य ल॑र
पंमितकूं देण्या, स्वाथचके वह मूखे ल॑र अयोझ लर इद्धिद्ीन श्रव-
स्थावूड् कलहकारकूं न देणा, अपणे२ गळे श्रधिष्टायक छेन्रपा-
ल मानकन्द्रादिकके साइायसे घर्मके उद्योत वास्ते मंत्र यंत्र तंत्रा-
दिक विद्या लब्विबलस संथर्स परोपकारी भ्रष्ट मादा प्रन्नावीक
होणा ॥ इति ॥
॥ अथ उपाध्याय कर्तव्य ॥
॥ सत्र श्रथे श्रनेक शास्त्रोके पटुने चर पढाणेवाले होणा
वध्धेमानदिययाका नित्य. जाप करणा, रात्रीचोविदार नवकारसी
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