श्रीकल्प सूत्र बाळावबोध | Kalpsutrabalavabodh
Book Author :
Book Language
मराठी | Marathi
Book Size :
18 MB
Total Pages :
490
Genre :
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No Information available about यतीन्द्र विजयजी महाराज - Yateendra Vijayji Maharaj
Sample Text From Book (Machine Translated)
(Click to expand)प्राथमिक-वक्कव्य.
भरा श्रसार संसारा प्राशिमात्रहुं जीवितव्य जलतरंगवत , नाना प्रकारनी
संपतिगे दुःखागारवह , इन्ट्ियोना विविध विषयो संघ्यारागवत् झ्नने सवजनादिकनो
समागम स्वप्नोपम के इन्द्रजालवद छे, तो पण मोहनीयकर्मेता उदयथी प्राणि समजे
देके भा म्हारा पुत्र ढे, भा म्हारी स्री दे, शा म्हारुं ऐश्वये घे, इं महा सत्ताधारी
इं, संसारगां म्हारा भागल पोलनार कोण छे. इत्यादि गानसिक विनाशी संकल्पा
पपहाइ प्राशिमात तेथी चशमात्र पण श्लग थद शकता नथी भरने दुराग्रह दभ,
होगादिकर्ा पी, मललेल भलुष्य जन्मने सफल करी शकता नथी. पूर्वे इुईंब, विभव
झने स्वजनादिकना संयोगजन्य सुखो य॒द्यपि श्रनन्तीवार जीव पामी चुक््या छे; तथापि
फरी मल्ले दवे त्यार जाणे ए सुखी इमणाज भल्या छे एम मानवासां तल्लीन थ
बाय छे, परन्तु परमाथ दृ्टिये जोतां तो सांसारिक दरेक सुखो दुःखरूपज छे. संसा-
रर्डक छे, कुगतिना कारण भरने निजगुणोच्देदक छे. भा कल्पित विषयसुखोगां
गोता खाद श्रनन्ता कालचक्र व्यतीत थइ गया. पण अत्यार सुधी तूप मलेल नथी
रने झागल मल्वानी श्राशा पण नथी माटे मिथ्या शराशा छोडी घमेध्यानमां दरपर
रदेईं एज उभयलोकमां हितकर मागे हे
मोहनीयकमेनी भट्टावीश ग्रदृतियोमांथी ज्यारे भ्रनन्ताचुबंधी क्रोध, मान)
माया भरने लोभ ए चार प्रकृतियोनो समूत् चय थाम त्यारे चायक सम्यकत्व, दयो-
पशम थाय त्यारे चायोपशमिक सम्यक्त्व अने उपशम थाय, त्यारे उपशम सम्यकत्व
थाय छे, शा त्रण्मांथी कोहएक सम्यकत्व जीवने मल्ले ह्यारे जिनेन्ट्रमावित शुद्ध धम
भन्यो एम कही शकाय ने तेना मलवाथी बीवोने स्वयमेव विचारी उत्पन्न थई
जाय छे के सांतारिक विषय सुख श्रनित्य छे, भा पार्थिव शरीर कषणगंगुर छे. भोग
रोगना घर छे, स्वजनादिकनो समागम पंखियोनो येलो छे. संसारमां सकमींचीवो
'पजर धमर रेषांना नथी. एक दिवसे मोठनो इंको तो वागवानोज छे, माटे काल
ऊपर मरोसो न करतां जे काई शुभकृत्य करवा छे ते स्वराथी करी खड तो सारं,
एवा सदिचारो तेना मनोगंदिरमां थी ते बीषो तप, जप, प्रतिक्रमण, पौषघ,
अत) नियम, पूजा, प्रभावना अने तीथेयात्रा पेरे शुभ कायी करी पोतानी आत्याने
सफल बनाववा समथ थाय छे, भरने तेवाज प्राणियो द्विविध ( भन्तर्बी्य ) परिग्रहनो
त्याग फरी, संयम आादरी, स्वेमुखे गंगल गवरावी तथा पोतानी झीचिने श्रजर-अ्रमर
गनावी कृलकृत्य थाय छे,
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