कुण्डळी चक्र | Kundali Chakr

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कुणडली चक्क ११ रतन हठ-पूर्वक बोली;-- “वहुत तो पुढ ली:श्रभी हाल हारमोनियम हीरहनेदो!'. 9 '_ श्रजितकुमार ने लल्लित की श्ररुचि देखकर रतंन से कहा--'प्राज के लिये.इतना ही बस है । श्रंग्रेजी पढ़ लो, कल फिर देखा जायगा 1!” . . रतन ने मान लिया, श्रौर कूछ उदास. होकर हारमोनियभ वन्द कर दिया । पुस्तक हाथ में लेली। '” . “ . 'ललित.ने कहा--'थोड़ी देर किताब पढ़नें के वाद फिर हारमोनियम .-सीखना । मास्टर साहब, वह ठुमरी पूरी सिखलाकर जाइयेगा ।'* शभ्रजितकुमार' ते: कोई एतराज 'नहीं किया । भविष्य की भ्राद्या चे रतत के खेद को हटा दिया; श्रौर वह श्राग्रह के साथ ग्रन्य-पाठ सें लग गई । 'ललितसेन . बैठक में . श्रा गया । बैठा ही था कि दो भले मानस भ्राये, एक 'की. ग्रवस्था 'उतरने को थी,'ददसरे की चढ़ने को । पहले व्यक्ति के चेहरे पर चिताभ्रों की रेखायें थीं, . श्रौर व्याधियों का इतिहास भ्रंकित था । सोती हुई सी श्रांखों की तली में सहसा प्रवतन छिपा मालूम पडता :. था। दूसरे व्यक्ति की २३-२४ वर्ष की भ्रायु होगी । सतेज नेत्र, दृढ़ श्रोष्ठ-संपुट .भ्ौर्‌ - सुडौल श्राकृति । परन्तु कभी कभी भ्रांखें नीची होकर वबाये-दायें देखते'लगती थीं.॥ र ललित ने इन लोगों से श्राने का कारण पूछा । ' श्रघेड व्यक्ति ने कुछ कहने के लिये होठ पर पहले जीभ डाली, श्रौर सम्भला था कि. युवक बोला--'इनका नाम बाबू शिवलाल है। मऊरानीपुर में रहते है । कई मौजों में भ्रापकी जमीदारी है । कुछ वरसों से फौजदारी श्रौर दीवानी.. सुकहदमेः लड़्ते-लड़ते टण हो ग्या है । : साहुकार चाहते हँ कि या' तो वह भ्रपनी जमीदारी में से कुछ भाग उनको. बेच दें, या रुपया इकट्टा इसी समय दे दे । कुल रुपया इसी समय देने का सवालनहींहै1 दो बरसे म. श्रापकी जमीदारी का सुन्तजिम _ है बहुत सम्भाला, परन्तु रुपया इंकट्टां नहीं हो पाता है 1 श्राप सजातीय है, इसलिये हम. लोग श्राप के-पास दौड भ्राये हद ।1'




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