कुण्डळी चक्र | Kundali Chakr
Book Author :
Book Language
मराठी | Marathi
Book Size :
7 MB
Total Pages :
229
Genre :
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(Click to expand)कुणडली चक्क ११
रतन हठ-पूर्वक बोली;-- “वहुत तो पुढ ली:श्रभी हाल हारमोनियम
हीरहनेदो!'. 9
'_ श्रजितकुमार ने लल्लित की श्ररुचि देखकर रतंन से कहा--'प्राज के
लिये.इतना ही बस है । श्रंग्रेजी पढ़ लो, कल फिर देखा जायगा 1!”
. . रतन ने मान लिया, श्रौर कूछ उदास. होकर हारमोनियभ वन्द कर
दिया । पुस्तक हाथ में लेली। '” .
“ . 'ललित.ने कहा--'थोड़ी देर किताब पढ़नें के वाद फिर हारमोनियम
.-सीखना । मास्टर साहब, वह ठुमरी पूरी सिखलाकर जाइयेगा ।'*
शभ्रजितकुमार' ते: कोई एतराज 'नहीं किया । भविष्य की भ्राद्या चे
रतत के खेद को हटा दिया; श्रौर वह श्राग्रह के साथ ग्रन्य-पाठ सें लग
गई । 'ललितसेन . बैठक में . श्रा गया । बैठा ही था कि दो भले मानस
भ्राये, एक 'की. ग्रवस्था 'उतरने को थी,'ददसरे की चढ़ने को । पहले व्यक्ति
के चेहरे पर चिताभ्रों की रेखायें थीं, . श्रौर व्याधियों का इतिहास भ्रंकित
था । सोती हुई सी श्रांखों की तली में सहसा प्रवतन छिपा मालूम पडता
:. था। दूसरे व्यक्ति की २३-२४ वर्ष की भ्रायु होगी । सतेज नेत्र, दृढ़
श्रोष्ठ-संपुट .भ्ौर् - सुडौल श्राकृति । परन्तु कभी कभी भ्रांखें नीची होकर
वबाये-दायें देखते'लगती थीं.॥ र
ललित ने इन लोगों से श्राने का कारण पूछा ।
' श्रघेड व्यक्ति ने कुछ कहने के लिये होठ पर पहले जीभ डाली, श्रौर
सम्भला था कि. युवक बोला--'इनका नाम बाबू शिवलाल है।
मऊरानीपुर में रहते है । कई मौजों में भ्रापकी जमीदारी है । कुछ वरसों
से फौजदारी श्रौर दीवानी.. सुकहदमेः लड़्ते-लड़ते टण हो ग्या है ।
: साहुकार चाहते हँ कि या' तो वह भ्रपनी जमीदारी में से कुछ भाग
उनको. बेच दें, या रुपया इकट्टा इसी समय दे दे । कुल रुपया इसी समय
देने का सवालनहींहै1 दो बरसे म. श्रापकी जमीदारी का सुन्तजिम
_ है बहुत सम्भाला, परन्तु रुपया इंकट्टां नहीं हो पाता है 1 श्राप सजातीय
है, इसलिये हम. लोग श्राप के-पास दौड भ्राये हद ।1'
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