कामसूत्र (भाग 5) | Kamasutra (Part 5)

Book Image : कामसूत्र (भाग 5) - Kamasutra (Part 5)

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महर्षि वात्स्यायन - Maharishi Vatsyayana

Add Infomation AboutMaharishi Vatsyayana

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ओक (1)- तेषु साध्ययमनत्ययं गम्यत्वमायति वृत्ति चादित एवं परीक्षेत।। अर्थ- पराई रसी के साथ सभोग करने की इच्छा रखने से पहले यह सीध मैना चाहिए की मिल सकती है या नहीं, उसको पाने में कहीं किसी तरह का संकट तो नहीं आ सकता, छ । सभोग करने के लायक है भी या नहीं, उसे अपने वश में करने के बाद उस पर मेरा सर कैसा पड़ेगा और मुझे इससे क्या फायदा होगा। भोक (2)- यदा तु स्थानाक्यानान्तरं झालं प्रतिपद्यमान अश्तदात्मशारीपिपाताणार्य परपरिग्रहनभ्युपगत्।। अर्य- जब पुरुष किसी पराई स्त्री को देखकर होजना में भर जाता है तो उसे इस समय सोयना चाहिए कि मैं क्या कर रहा है। जब से महसूस हो कि अब मैं उसे संभोग करे बिना नहीं रह सकता तब जाकर उस सी के साथ संभोग करना चाहिए। झोक (3)- दश तु कामस्य स्यानानि।। अर्य- व्यवहार के लिए उत्तेजना के 10 स्थान है। क (4) पशुपतिर्मन संग संकल्पोत्सापतिर्निद्राष्टस्तनुता विषयेभ्यो व्यावृतिप्रणाश मादी मूर्भ रणनिति तेषां निगानि। अर्थ- सी को देखकर आंखों में प्यार छलक जाना, मन को भटक जाना. इसे कासिल करने की कसम ला, रात में द न आना, शरीर में कमजोर होते जाना, सब चीजों से मन ट जाना, शर्म न करना, पागलपन पैदा हो जाना, देहरी छान्ना और मृत्यु हो जाना उतेजना के 10 स्थान हैं। क (5- तराकृतितो सभणन् युवत्याः शील शय साध्यता पर्वगतो व शर्यदित्यापायः ।। अर्य जो पुरुष पराई स्त्री से संभोग करते है वह पहले से स्त्री की सूरत और इसके हाव-भाव को देखकर पता कर लेते हैं कि यह पवित्र स्त्री है या पराए पुरुषों में दिलघस्पी रखने वाली री है। भोक (6) व्यविचारादाकृतिलक्षणयोगानामिगतकाराज्यानै प्रतिबद्धव्या योपित इति वात्स्यायनः।।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now