कामसूत्र (भाग 6) | Kamasutra (Part 6)

Book Image : कामसूत्र (भाग 6) - Kamasutra (Part 6)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आर्य वैश्या रवी हर समय श्रृंगार किये रहे तथा सड़क पर आने-जाने वाले लोगों को देखती रहे। से ऐसी जगह पर बैठना चाहिए कि लोग आसानी से देख सके, लेकिन इसे बिल्कुल निर्यस होकर नहीं बैठना चाहिए क्योंकि वेश्यावृति भी बाजार में बिकने वाली वस्तुओं के समान है। लोक-8.यैर्नायकमावर्जयेदन्याभ्याधायच्यादात्मनातर्थ प्रतिकुर्यादर्थ च साधयेत्र य गम्यैः | परिभूत तान सहायान कुर्यात्।।३।। अर्थःवेश्या को असी व्यक्ति को अपनी सहायता करने वाला बनाना चाहिए, जो उसके प्रेमी को इसकी ओर आकर्षित कर सके तथा उस पर आये हुए संकट को दूर कर सके। यदि वैश्या के साथ सेक्स करने याना व्यक्ति इसका शोषण करना चाहे तो सहायता करने वाला व्यक्ति उसकी मदद कर सके जिससे उसका शोषण न हो। क-9. ते त्यारक्षकरुण धर्माधिकरणस्था दैया विक्रान्ताः शूराः समाधियाः कलाग्राहिणः पीठमर्दविटविदूषकमालाकारगान्धिक-शौण्डिकरजकनापितभिक्षकास्तं च ते घ कार्ययोगात्।।9।।। अर्थशासनाधिकारी, वकील, ज्योतिथी, साहसी, मालाकार, गन्धी, शराब के विक्रेता, नाई, धोबी, भिखारी और अन्य ऐसे ही लोग धेश्या के मददगार हो सकते हैं। लोक-10, गन्यचिन्तामाह- केवलार्यास्त्वमी गम्याः- स्वतंत्रः पूर्वं वयसि वर्तमानों विलवानपरोक्षवृतिरधिकरणवानकृयाधिगतवितः। संघर्षवान् सन्ततायः सुभगमानि मापनकः पण्डका पुंशब्दाय। समानस्पर्धा स्वभावतस्तागी। राजनि महामात्रे वा सिद्धो दैवप्रमाणी यितायमानी गुरुणा शासनातिगः सजाताम् लक्ष्यभूतः सवित एक पुत्रों लिंगी प्रच्छन्नकामः शूरो वैयचेति।।1oll | अर्थ अधिकतर वेश्याएं उन्हीं लोगों से लेन-देन करती हैं, जो सामाजिक पारिवारिक बन्धनों से मुक्त स्वतंत्र होते हैं। एक बंधी हुई आमदनी वाले बरुण होते हैं और जो व्यक्ति अपिक न खर्च करते हैं, जिनके पास पैतृक संपति हो जो स्वयं न कमाकर दूसरों की कमाई खर्च करते है। इसी तरह जिस व्यक्ति को अपने रुप, यौवन तथा धन पर गर्व हैं, जो नपुंसक होकर भी अपने को अधिक सेक्स क्षमता से युक्त मानता है, जिसकी धन देने की स्वाभाविक प्रवृति हो, राजा और मंत्री पर जिसका प्रभाव हो, ज्योतिथी, आवारा माता-पिता का जो इकलौती संतान हो। संयासी जो वेश्या से संबंध बनाकर छिपाना चाहता हो और शारीरिक रूप से शक्तिशाली व्यक्तियों में वेश्याएं धन प्राप्त करने के लिए संबंध बनाती हैं। लोक-11. प्रीतियशोऽस्तु गुणतोऽपिगम्याः।।11।।




User Reviews

  • sana

    at 2019-10-16 09:43:02
    Rated : 10 out of 10 stars.
    Thanks for giving us this book! This book in very informative to know about any work how to get deep understanding of this work!
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