दोहा कोष | Doha Kosh

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Doha Kosh by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankratyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ) थी, जिसे साहित्य के रूप में ही पढा-समझा जा सकता था । सरहपाद नें सस्कृत के पडित होते भी तत्कालीन “भाषा” को श्रपना साध्यम बनाया । बौद्ध ही नही, ब्राह्मण-धर्म मे भी अरब नये धार्मिक श्र दार्जनिक सप्रदाय उपस्थित होनेवाले थे ।. अब भी. उत्तर और दक्षिण में प्रभावशाली था । गुप्तकालीन वैष्णव-धर्म ह्लासोन्मुख था । व दक्षिण के शकर का मायावादी विज्ञानवाद दर्गन प्रकट हो रहा था । शकराचा्ये सरहपाद के समकालीन थे । वह असग के योगाचार दर्शन को नई बोतल में पुरानी शराब डालने की उक्ति के श्रनुसार एक नया रूप दे रहे थे । यह बात लोगो से छिपी नही थी । उनके प्रतिद्वंद्वी गकराचार्य को 'प्रच्छ्न बौद्ध' कहा करते थे । शकर ने यद्यपि इस बात को छिपाना चाहा, कि उनका दर्दन योगाचार की देन है, पर उनके मान्य आचार्य श्रौर परपरा के भअ्रनुसार परमगुरु गौडपाद बुद्ध को समस्कार करते अपनी कारिकाओओ मे उनके ऋण को स्वीकार करते हे। कर मुह से न कहते भी आ्राचरण से बौद्ध श्रौर ब्राह्मण-दर्शनो के सबध में समन्वयवादी है । धामिक मान्यता में भी वह समन्वयवादी थे । शिव, विष्ण या छक्ति- सभी को वह परमदेवत श्र श्राराध्य मानते थे । यद्यपि यही बात वैष्णव अलवारो के सबध में नहीं कहीं जा सकती, पर उनके द्वारा वेष्णव-धर्म भी उस रूप को लें रहा था, जो उत्तर श्र दक्षिण मे देखा जाता है, श्र जिसका सबसे श्रधिक जोर भक्ति पर ह। बौद्धध्म की तरह ब्राह्मण धर्म के लिए भी यह काल एक नये सदेश का वाहक हे । जैन- धर्म के बारे मे यह बात उतने जोर से नहीं कही जा सकती, पर वहाँ भी योगीन्दु, रामसिह-जैसे सन्तो को हम नया राग श्रलापतें देखते हें, जिससे समन्वय की भावना ज्यादा सिलती है । सरह के साथ एक नये धार्मिक प्रवाह को हम जारी होते देखते हे, जो झ्राज भी सन्त-परम्परा के रूप में हमारे सामने मौजूद हूं । इसके बारे मे हम झ्रागे कहनेवाले हे। सन्तो के साथ जिस योग झ्रोर भावनाओं का सबध हैं, वह भी इसी समय श्रपने नये रूप मे प्रकट होते हूं। उनकी भावना या योग वहीं नहीं हैं, जिसे पतजलि कं योगदर्गन या पुराने वौद्ध-सूत्रो में देखते है। इस ध्यान ओर भावना कं लिए यम-नियमों की उतनी श्रावइ्यकता नहीं मानी जातो थीं श्रौर न उसके ढंग उतने रूढ थे।




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