ओरायन मार्गशीर्ष का सारानुवाद वेदकाल निर्णय | Oraayan mrxgashiirshh Kaa Saaraanuvaad Vedakaal Nirnd-aya

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Oraayan  mrxgashiirshh  Kaa Saaraanuvaad Vedakaal Nirnd-aya by रामचंद्र शर्मा - Ram Chandra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ) शेखायें (1.्ततततेट९) कहलाती हैं । भूमध्य रेखा पर स्थित प्रदेश निरक्त देश कहलाते हैं । भू मध्यरेखा से ध्रुव तक देरन्तर रेखायें ९८ अंशों में विभक्त मानी गई हैं । ाजकज प्रीन्त्रचि स्थान पर से गुजरती हुई देशान्तर रेखा ( दल्तिशीत्तर वायाम्योत्तर रेखा ) से पूव को या पश्चिम को देशान्तर गणना की जाती है । ध्राचीन कान में उज्जैन स्थान पर से गजरती हुई देशान्तर रेखा गणना के लिए स्थिर की हुई थी । उज्जेनस्थ देशान्तर रखा भूमध्य रेस्वा की जिस बिन्दु पर काटती है उस बिन्दु को उदोति: शास्त्र में लंका नाम दिया है । लंका स्थान का अक्षांश ओर देशान्तर शुन्य माना जाता था । लंका से १८० अंश पूव की योर और १८० अंश पश्चिम की ओर इस प्रकार ३६० तुल्य भागों में भूमध्य रेग्वा विभक्त की जाती थी । उउजेनस्थ यास्योत्तर रेखा लंका स्थान से ९८ अंशों में उत्तर की ओर श्र ९० अंशों में दक्षिण की आर विभक्त को जाती थी । ाजकल यह उपयुक्त विभाग उज्जैन के स्थान में प्रीन्विच को मानकर किया जाता है | भूमध्य रेखा जिस घरातन में है उसी घरातल में प्रथ्वी सूय के गिद नहीं घूमती, यदि उसी घरातत में एथ्वो सूय के गिद॑ घूम तो दिन ओर रात सबदा तत्य रहें और प्रथ्वी पर ऋतुझओों का परिवतन भी न ही । ऋषुआं के क्रमिक परिवर्तन से प्रकट है कि प्रथ्वी सूय के गिद भी घमती है ओर उस धरातल में भी नहीं घमती जिसमें भूमध्य रेखा दे प्प्वी जिस घरातत में सूय के पिद घमती है उस घरातल को मकत्तावृूत्त ( 2011: > कहते हैं। किसो स्थिर तारे का उदय ओर अस्त स्थात पूव तथा पश्चिव में स्थिर रहता है । क्षितिज पर सूप के उदय और अस्त का




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