प्रेमसागर | Prem Sagar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्रेमसागर - Prem Sagar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ब्रजरत्न दास - Brajratna Das

Add Infomation AboutBrajratna Das

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१० ह गया पर वे ऐसे उत्तम मोटे ओर सफेर बाँसी कागज पर छपे थे कि अब तक नए और दृढ़ बने हुए हैं । लल्ूजी चौबीस वर्ष तक फोट विलियम कालेज में अध्यापक २ _भ३ गो क मं था रहे ओर वि ० सं० १८८१ में पेंशन लेकर स्वदेश लौटे । वे अपना छापाखाना भी आते सपय नाव पर लादकर साथ ही झ्रागरे लाए ओर वहाँ उसे खोला । झ्ागरे में इस छापेखाने को जमाकर ये कलकत्ते लोट गए और वहीं इनकी मृत्यु हुईं। इनकी कब और केसे मृत्यु हुई इसका दुत्त इनके जन्म के समय के समान निश्चित रूप से ज्ञात नहीं हुआ । परंतु पेंशन लेते समय इनकी झ्वस्था लगभग ६० वर्ष के हो चुकी थी । यद्यपि इनके भाइयों को संतान थी पर ये निस्संतान ही रहे । इनकी पत्नी का इन पर असाधारण प्रेम था श्र वे इनके कष्ट के समय बराबर इनके साथ रहों । ये वेष्णुव तो अवश्य ही थे पर फिस संप्रदाय के थे सो ठीक नहीं कहा जा सकता । संभवतः ये राघावल्लभीय ज्ञात होते हैं। . इतना तो स्पष्ट ही विदित है कि ये कोई उत्कट विद्वान नहीं थे और न किसी विद्या के झ्ाचाये होने का गवं ही कर सकते थे | संस्कृत का बहुत कम ज्ञान रखते थे उदूं झ्ौर अंगरेजी भी कुछ कुछ जानते थे पर त्रज भाषा अच्छी जानते थे । कवि भी ये कोई उच्च कोटि के नहीं थे । परंतु जिस समय ये अपनी लेखनी चला रहे थे उस समय ये वास्तव में ठेठ हिंदी का स्वरूप स्थिर कर रहे थे । हिंदी गद्य के कारण ही ये प्रसिद्ध और विख्यात हुए हैं ।.कुछ लोगों का यह कथन है कि यदि ये्माजक तोल होते




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now