आयुर्वेद का वैज्ञानिक इतिहास | Ayurveda Ka Vaijnanika Itihasa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27.83 MB
कुल पष्ठ :
798
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ मददाप्राण आयुर्वेद 2 फिर भी अपने आप में यह विस्मय का विषय है कि जब विश्व की सभी प्राचीन चिकित्सापद्धतियाँ समाप्तप्राय हो गई आयुर्वेद आज भी हजारों वर्ष पुरानी नींव पर खड़ा ८० प्रतिशत भारतीय जनता की सेवा कर रहा हैं । अनु- सन्धायकों के लिए भी यह गवेषणा का विषय है कि आयुर्वेद की इस महाप्राणता का रहस्य कया है? बीच बीच में भयानक तूफान आये इसे दफना देने की कोदिश की गई किन्तु यह ऐसा वख्त निकला कि मरने को तैयार ही नहीं । हिन्दू राजाओं ने इसे संरक्षण दिया तो मुगल बाददयाहों ने भी इसे अपना कर गुणपग्राहिता का परिचय दिया । अंग्रेजों ने भी इसे निरर्थक समझ नष्ट करने की योजना बनाई किन्तु उन्हींके मनीषी दूतों ने इसका गुणगान प्रारम्भ कर दिया और क्रम इसने अपना प्रसार प्रारम्भ किया जो अब तक चला आ रहा है । प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बैद्यों की नेंतिक विजय का कारण रहा आयुर्वेद का वैज्ञानिक उत्क्ष और उस पर आधारित इनका चिकित्सकौशल । अदभुत चिकित्साकौशल के कारण वैद्यों को सर्वत्र और स्वदा सम्मान मिला । यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि आयुर्वेद को राजकीय प्रश्नय दिलाने में वैद्यों का बैयक्तिक प्रभाव सदा आगे रहा है। भारत सरकार का सर्वोच्च चिकित्साधिकारी जेनरल पार्डी ल्युकिस कलकत्ता के कविराज विययरत्न सेन से अत्यन्त प्रभावित था जिसके फलस्वरूप उसने आयुर्वेद की उन्नति का मार्ग प्रदस्त किया । विभिन्न प्रदेशों में भी ऐसा ही हुआ । निरन्तर गति लोकसेवा पर वेद्यों का ध्यान बराबर रहा अतएव निरन्तर उसे समुन्नत करने की चेष्टा रखते आये । अनुभवों के द्वारा जो नया योग सफल प्रमाणित होता उसे ग्रन्थ में निबद्ध कर प्रकाशित करते । विदेशियों के माध्यम से भी यदि कोई नया द्रव्य या उपचार मिलता तो उसे अपना लेते । अहिफेन चोपचीनी आदि का समावेश ऐसे ही हुआ । इसलिए चाहे राजनीतिक स्थिति जो भी हो आयुर्वेद के क्षेत्र में सजनात्मक कार्य निरन्तर होता रहा । ऐसा कोई भी काल नहीं दीखता जब यह कार्य अवरुद्ध हुआ हो । परंपरा में जो नवीन तथ्य स्वीकृत होते वे ग्रन्थ में निबद्ध हो जाते । इस प्रकार समय समय पर नवीन ग्रन्थ प्रकाश में आते रहे । आधुनिक काल के प्रारम्भ में तो यह प्रवृत्ति बनी रही किन्तु आगे चल कर प्रतिक्रियावाद ने जोर पकड़ा । परिणाम यह हुआ कि कुछ लोग पीछे की ओर भागने लगे और कुछ लोग आगे की ओर । इसी रस्साकशी या विवत्त में अभी आयुर्वेद पड़ा है । आघ प्रवृत्ति सदा प्रगति की पक्षपातिनी रही है । इतिहास के अध्ययन से
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