बाँकीदास - ग्रंथावली भाग - २ | Baankidas - Granthawali Part-2

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Baankidas - Granthawali  Part-2 by रामनारायण दुगड़ - Ramnarayan Dugd

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ ्राशा से नाटक करने को तैयार हो जाते हैं जो कंजूसी के कारश अच्छा खति पीते तक नद्दीं जा याचकों के धन को भी छीनने तक मे नहीं चुकते जिनको देना शब्द मात्र बुरा लगता है जा अतिथि को देखकर अपना दरवाजा बंद कर लेते हूँ-ऐसे कप अ्र्थाव्‌ कंजूस मनुष्यों के निज मुख देखने को झद्भुत दपण निर्माण किया है। जैसा कि स्वयं कवि ने प्रंथ के झंत में कहा है-- क्रपशानू कृपया तणों रूप दिखावण काज | म्ंथ क्रपण दपण किया रीकॉँवश कविराज ॥ वस्तुत अनुभवी कविराज ने उन धघन-पिशाचो को उस महा अपराध से मुक्त करने के लिये यह मानों दंडसंग्र ह बनाया है क्योंकि यद्द नराघम नारायण की झरद्धांगिनी लचमी को निर- पराधघ केद करते हैं शायद भगवान्‌ लक्ष्मी से कुछ नाराज हाकर अपनी कोमल कमला को इन कसाइयें के वश मे डाल देते हैं । लच््मी भी कसाइया के कैदखाने में पड़कर कितनी दुखी रद्दती हागी उसकी जान अजाब मे रहती होगी । अकल के अंधे कंजूस- राम परमेश्वर की दी हुई न्यामत अर्थात्‌ घन का केसा दुरुपयोग करते हैं । बुद्धिमानां ने धन की तीन गतियाँ कद्दी हैं। यथा सारठा-- दान सांग अर नाश है यह धन की तीन गति । बद्च घन होय विनाश जो देवे नहि खाय नह ॥।




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