लखनऊ की कब्र | Lucknow Kii Kabra Part-2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Lucknow Kii Kabra Part-2 by श्री किशोरीलाल गोस्वामी shri kishorilal goswami

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. किशोरीलाल गोस्वामी - Pt. Kishorilal Goswami

Add Infomation About. Pt. Kishorilal Goswami

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
১৫ योड़ीही देर हुई थी प कोई खरक को गाङ मेरे कानों श्च घुम दी, जिसे सुनझर में न्ौंस उठा और चाद्ृतां था कि कुछ बोलू', लेकित यह सीचकर कि, यही दिल्लगीवाजु बाज्ञनों मुझसे कुछ मजाक करने आई होगी, में ज़ामोश रहा ! शे कर लक्षनक को कत्र फिर ते मुर्के ऐसा मालुपप्डामोया कई आदमी मैरी कोठरीयँं चल फिंए रहे हैं यह जानकर में कुछ खराक्षेकिन में डराहास्वलमें,जय कि घर में अधेरा था,किसो जासिबकों सागनेत्ी राह नथी অল था और मेरे पास कोई हथियार मोजूद सथा,मैं स्पा छर सकताथा! लाचार, क्रिएमत पर भरोत्ता रखकर में चुपचाप अपनो जलारपाई पर पडा रह) ओर्‌ अजनयो श्लौ हकत पर कोन छगु र्‌ा । कुछ देर बादू कुछ फ-+फुपाइंट नाः दो, जरे. यापक्ततै कोर “वात चौत करता हो | छेकिन उस छुमके को या उसके मतल्लप को मैं तुतलक न॑ समा । फिरतो धीरे चौरे छद बात चीत साफ सफ खुताई देने छगी, जिसका मतलब यह शा,--- एक,-- दिखों; वह सूजी यरी चारपाई पर सर्द दोगाः, चस -चट उससे देशी की दया छ'घाछर यहां से उठा छेचलो | * दूसरा,-- “लेकिन, ऋह्दी खेंचलू , यद ते तुमने, बी | वतरूाया ছা লগা? पुकर,--“ इसमे बतलाने की फ्या जरूरत है ? इसे महलरूलरा के बाहर ले जाकर किसी निरालों जगह में सांरकर गाड़ देता । ली पेखा करूणा; लेकिन इनाम লিক লালা नादे । एक,--“ आह, देश न करो ओर्‌ द्द्‌ इस ग्रण को यद्दा से उठो छ जाओ, बरन फंसाद बरपा! हागह । ४ कूछर)।-- लेकिन इनांस 2० ५ ० छाहलबलाकूबत | भज्ञी मेरी बातों पर शुषकों यकीन नदा ह | तुस्दारा इनात,जाफि तुमसेकहा गयाहै,एसी जगहपर,उसी कफ +~ शष




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now