भरत और उनका नाट्यशास्त्र | Bharat Aur Unka Natya Shastra

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Bharat Aur Unka Natya Shastra by ब्रजबल्लभ मिश्र - Brajballabh Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ । अर्थ मात्र सस्कृत भाषा के ज्ञान से ही नही समझे जा सकते। उनके अर्थ कोषगत्‌ अ्थों से पूर्णत भिन्न हैं। साथ ही एक-एक शब्द अलग-अलग प्रसंगों मे अपना अलग-अलग अर्थ देता है। यही कठिनाई है कि सारा देश कर से भरा हुआ है किन्तु आज तक इसका शुद् अनुवाद नही हो पाया । कलकत्ता के सुधी विद्वान डा! मनमोहन घोष का नाम इस क्षेत्र मे सदा याद रखा जावेगा। उन्होने सन्‌ १९५७ मे 'नाटयशास्त्र' का अंग्रेजी अनुवाद किया था। वह ऐशियाटिक सोसाइटी आफ बगाल कलकत्ता से छपा था। दुर्भाग्य से उस अनुवाद में २८ से ३३ तक के ६ अध्याय नही थे। डा0 घोष ने बाद मे एक प्रयास और किया और मनीषा के नाम से दो पुस्तकों मे 'नाटयशास्त्र' प्रकाशित हुआ। एक पुस्तक मे केवल मूल सस्कृत पाठ था और दुसरी मे केवल अंग्रेजी अनुवाद। डा0 घोष के अग्रेजी अनुवाद से समाज के उस वर्ग को बहुत लाभ हुआ जो अंग्रेजी बोलने तथा लिखने का अभ्यस्त था। जैसा कहा जा चुका है कि 'नाट्यशास्त्र' का साहित्य भारत की प्राचीन कला और सस्कृति का अक्षय कोष है। अंग्रेजी वाले लोगों को यह सम्पदा मिल गई। अग्रेजी वाले चन्द लोग जो बार-बार 'नाट्यशास्त्र' के सन्दर्भ अग्रेजी मे प्रस्तुत करते थे थोड़े ही समय में शास्त्र के अधिकारी विद्वान बन गये। समाज मे जब भी भारतीय प्राचीन कला पर कोई गोष्ठी हुई इन्हें अध्यक्ष बनाकर बिठाया जाने लगा किसी पत्रकार को कभी भारतीय कला पर सामग्री की अपेक्षा हुई उनका साक्षात्कार (॥(8५16// इन्टरव्यू) लेने पहुँच गया। भारतीय कला पर किसी ने पुस्तक लिखी, भूमिका इन लोगो से लिखाई गई। सत्य यह है कि अंग्रेजी के द्वारा 'नाट्यशास्त्र' पढ़नेवालो का ज्ञान बहुत सती और कम है। इनके पास 'नाटयशास्त्र' की गहरी और गम्भीर बाते संयोग से पहुँच ही नहीं पाई हैं। उस संयोग का कारण यह है कि एक तो इस वर्ग के लोगों ने डा० मनमोहन घोष के अंग्रेजी-अनुवाद के माध्यम से नाट्यशास्त्र' को पढ़ा है वह छानुवाद पूर्ण नहीं था। अत शास्त्र की पूरी विषयवस्तु का इन्हें जान नहीं डो पाया। दुसरे अंग्रेजी भाषा में वह क्षमता




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