भाषा विज्ञान एवमं हिंदी भाषा का इतिहास | Bhasha Vigyan Evam Hindi Bhasha Ka Itihas

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Bhasha Vigyan Evam Hindi Bhasha Ka Itihas by भारत भूषण - Bharat Bhushan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) जो जटिल समस्याएँ किसी देश श्रौर काल में उपस्थित होती हैं, उनका .सुलकाव जिस खूबी से भाषा-विज्ञान-विद्‌ करता है उतना श्रन्य नहीं । सापा-विज्ञान का सभी शास्त्रों से सम्बन्ध है । साषा-विज्ञान श्रौर सनोविज्ञान--भाषा-विज्ञान श्र मनोविज्ञान का भ्रति निकट का सम्बन्ध है । भाषा मनुष्य की इच्छा शक्ति का फल है । किसी भी देद्य में पाई जाने वाली मानवी भाषा इस विज्ञान को विपय है । भाषा-विज्ञान का कार्य किसी जाति विशेष, देश विशेष या 'काल विशेष की भाषा के लिये परिमित नहीं है। अ्रसभ्य से श्रसभ्य जातियों की ऐसी बोलियाँ, जिनको कोई जानता नहीं तथा सभ्य जातियों की साहित्य सम्पन्न भाषाएँ--दोनों पर विचार करना यहाँ आ्रावद्यक है । ' भाषा- विज्ञान की दृष्टि में कोई भी भाषा, जिसके द्वारा मनुप्य श्रपने विचार प्रकट करता है, एक मूल वस्तु है । परन्तु भाषा-विज्ञान-सम्बन्धी-सिद्धांतों या नियमों का पता लगाने के लिये वे बोलियाँ; जिनका साहित्य से कोई सम्पर्क नहीं हुमा है, भाषा-विज्ञान की दृष्टि से झधिक मूल्य रखती हैं । एक दाब्द के बन जाने के बाद भी उसमें अपनी रुचि के अ्रनुसार परिवर्तन तथा परिवद्ध॑त होता रहा है । उच्चारण में मुखसुख, प्रयत्नलाघव श्रादि के श्राधार पर ध्वनि परिवतंन श्रौर भ्ररथ परिवतंत होता है । ये सब मनो- विज्ञान से ही सम्बन्ध रखते हैं । शब्दों श्रौर प्रयोगों की बनावट, विकास और ह्वास में मनोविज्ञान वहुत सहायक है । हम देखते हैं कि कोई-कोई मनुष्य बोली के सभी श्रवयवों के सही रहते हुए भी तुतलाते हैं, रुक-रुककर बोलते हैं, इस दोष का हेतु मनो- विज्ञाव बता सकता है । इस तरह भाषा में जो परिवर्तन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक श्राते-भ्राते हो जाते हूं, उनका कारण सनोविज्ञान से ही मालम हो सकता है । इस प्रकार भाषा-विज्ञान मनोविज्ञान का ऋणी है। परन्तु बदले में मनोविज्ञान भी भाषा-विज्ञान का ऋणी है । उसे भी विचारों के विश्लेषण, श्रनूभव की सम्पूर्णता, श्रपुर्णता श्रादि के श्रध्ययन में भाषा-विज्ञान का सहारा लेना पड़ता है ।




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