तुलसीदास आलोचनात्मक अध्ययन | Tulasidas Aaloochanatmak Adhyayan

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Tulasidas Aaloochanatmak Adhyayan by भारत भूषण - Bharat Bhushan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ॥ सूफियों ने दिन्दू-कथाभों के अधार पर प्रेम-कहानियाँ लिखकर हिन्दू-मुस्लिम सास्छृति. एकता का मां प्रशस्त किया । यह समय की माँग थी और हमारे हिंस्दी के साधकों ने उसे पूरा करने का प्रयत्न किया था । निष्कष : उपयु क्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि भक्तिकाल की सम्पूर्ण धाराओं के उद्गम के मूल में एक अविच्छिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक भावना कार्य कर रही थी । इस पर न किसी विदेशी भक्ति-घारा का प्रभाव था और न यह विदेशी शासकों के अत्याचारों से उत्पन्न निराशा की प्रतिक्रिया के रूप में ही प्रकट हुई थी । वीरगाथाकालीन संघषंपुर्ण वातावरण में यह घारा हमें राज-दरबारों में लिखे गए वीर-रस प्रधान साहित्य के कारण दबी हुई-सी दिखाई देती है । परन्तु यहां यह उल्लेखनीय है कि उस काल में भी राज- दरबारी से बाहर जो साहित्य र्चा गरहा था वहु एक प्रकार से धार्मिक साहित्य ही था। वीरगाथा काल की समाप्ति प्र जघ कान्य राज-दरबारो के संकीणं वातावरण से मुक्त हो, हटकर पुनः: जनता में आया तो बीच में लुप्त सी दिखाई पड़ती भक्ति-भावना अनुकूल अवसर पाकर प्रस्फुटित एवं पत्लवित हो फलवती बनी । संक्षेप मे, दक्षिणा की भक्तिधारा ने, जिसका आधार शास्त्रीय विवेचन था, उत्तरी भारत मे सगुण भक्ति, का बीजारोपरण विया! यद्यपि यहा क्षेवो, सक्तो एवं नारदी-भक्ति-पद्धति के रूप में सगुण-भक्ति पहले से ही प्रचलित थी । परन्तु उसके रूप को व्यवस्थित कर उपे पुनरुज्जीवन प्रदान करने वाली धारा दक्षिण की सगणा भक्तिन्वाराही थी ) इस सगुण भक्तिनधाराके दो प्रमुख भेद हुए-- कृष्ण भक्ति-धारा अर राम-भक्ति धारा ¦ बौदधमत के ध्वंसावशेषो-सिद्धो एवं नाथों--के प्रभाव से एवं उनकी प्रतिक्रियास्वरूप निगुण धारा का आरम्भ हुआ जिसमें सूफियों की सरसता, मायावाद की नीरसता आदि अनेके परस्पर विरोधी तत्त्वो का अदभुत मिश्चणथा। निगुण भक्तिघारा क हम एक प्रकार से विभिन्न पूवं एवं समकालीन विचारघाराओं की एक अद्भूत खिचड़ी भी क्‌ सक्ते हैं । इसके भी दो भेद हये-- ज्ञानमार्ग शाखा तथा प्रेममार्गी शाखा ।




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