डा॰ नगेन्द्र के सर्वश्रेष्ठ निबन्ध | Dr. Nagendra Ke Sarvashreshth Nibandh

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Dr. Nagendra Ke Sarvashreshth Nibandh  by भारत भूषण - Bharat Bhushan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कदिता बया है? २३ प्रतिबाद की प्रस्थापना है ग्रौर मनोविज्ञान के इस स्वयंसिद्ध तर्क का निपेज है कि मन के उच्छगास के साथ बाणी भनिबायत उच्छूबासित हो जाती है। बाणी का यही उप्रफगास उक्ष्ति-बंचित्य है इससिए ध्यापक भर्प में उक्ति डैमिश्य का घ्माव किता में सभग नहीं है । प्रकारास्तर से हम यह भी कह सकते हैं कि उक्ति-ई चिह््य के प्रमाव में कबिता सही हो सकती । तीसरा तत्त्व है संगीत । इसक बिपय में हो मतभेद झ्ौर भी प्रसिक हैं। सस्कृत काम्मपास्त्र जय निश्नस्ति मत है कि छस्‍्द कबिता का बेकस्पिक उपकरण है। उपर हिन्दो के भष्ययुगीत प्राचार्यों के सिए छम्द के प्रभाव में कमिता तो गया साहित्य के किसी झृप की कस्पना सम्मब नही थी । यूरोप में इस प्रस्‍्त को शबर नियमित कप से दो दस बस गए घे---एक प्रोर भरस्तू श्रौर काश्रिज जैसे भासाघक छुम्द को बैकल्पिक मानते थे दूसरी धोर ड्राइडन भाषि के मत से छम्द का संगीत कथिता का प्रतिवार्य मास्यम था। मेरा मत भो छन्द के “इस पुराने प्राम्प विश्षेपएा” को कृबिता गा प्रनिबार्म तत्व मानते ने ही पक्ष में है। छम्द दबिता का सहज बाहत है। प्रस्यके साहित्य-हप की प्रपनो-प्रपनी सहुण बिघा है माटब वे लिए सबाद रकुपा-माहित्य के सिए बर्णंसाश्मक गश प्राशो- आना के लिए विवेचतात्मक पद्य निबन्ध क॑ सिए रशित गद पग्रौर कबिता के छसिए छल्द। नाटक के रग-संकेों में बग्पनात्मक गद्य का प्रयोग होता है उपम्पाम में सबाद का प्रास्ोषगा में सल्तिद गद्य का प्रौर निमध में बिस्‍्लेपात्मक गध बा--ऐसे हो कबिता में सययुक्त गद्य-संगीत का कुष्ठ कबियों मे सफल प्रयोग झिया है। किस्तु यह सहज स्थिति नही है. यहां एशं बिया के तत्त्व दूसरी बी सीमा में प्रवेश बर छात हैं जैंस बास्थुक्सा मे मूतिकला या चित्रहला का भी प्रयोग प्राय” हरदा भ्राया है। बास्तव में समस्त बसा तथा साहित्य-इर्पों का मूल तत्व तो एक ही है रूप बिषाएं मिम्न हैं. भ्रत उनके बाय उपकरण बहुषा एकडूसर की सोमा का स्‍प्रतिकहमरा करते रहुत हैं । साटक में स्‍भ्रास्यान-सत्त्य का ऊपस्यास में नाटूय तत्त्व प्रास्राघना में साप्षिर्य का समागश हो जाता है परम्तु फिर भो इसके बैधिप्टूप में कोई प्रन्तर गही पड़ता । इसी प्रकार गध-साहित्य का ध्मंक सूप रस के प्राइप से बाव्यात्मक हो सबते हैं घोर कबिता में भो शाद्य सब वा समावंध हा रकता है कबिता प्रामोबतारमझ भी हा सपती है पौर पचरत्‌ भी बिम्तु ढृष्ट उमक्ता महज या शुद्ध झप नहीं है। भेरे बहने का तात्पपं ये है कि माटक उपस्पास सिद्रस्थ भ्रादि की मांति कबिठा भी रस के साहिएप बी एश दिस्िप्ट दिपा है---पूछठ दस्द दो सभी बा एक ही है--रस क्म्ति पाष्पम के प्रापाडु पर इसमें परस्पर भदद है जो इसे बैश्िप्टूय क्रो रदय करता है। बिता साम की सारिए्य-दिपा का माष्यम है छंइ। सख्त काम्पधास्त्र मे काप्य--रस के साहिस्य दा पर्याय है जिस प्रस्वमेत माटप-उपस्पास भादि का




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