ज्योतिश्चान्द्रिका | Jyotishchandrikaa

Jyotishchandrikaa by गंगा प्रसाद गुप्त - Ganga Prasad Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ लड़ा यदाद्य स्थात तदा दिनाघं यमकोरटिपुय्यास । अधस्तदा सिदुपुरेश्स्तका लः स्याद्‌ रोमके रात्रिदर्ल तदेव ॥ इस का कारण प्रथिवो का गाल कोना दौरे क्योंकि- भग्रहमान गालारधानि स्वच्छायया विव्णानि। अधानि यथासारं दीप्यन्ते ॥ आय्य भट्टीये अध गाल छोने के कारण भूमि श्रादि ग्रह उपग्रहों के आधे भाग अपनों छाया से अन्घ कार में रहते दें और सूय्य के सामने के आपे भाग प्रकाशित होते हैं शा शाह 3 घट इव निर्जम॒त्ति च्छाययंवातपस्थ । ससि० शशि 2 रथ जेसे घप में रक्‍्ता हा घड़ा आधा प्रकाशित श्र आधा अपनों हो मसूत्ति को काया में रहता है ॥। १०-दिन रात के घटने बढ़ने से भो प्थिवो का गेल छोना सिद्द होता दे ।.... ज्योतिष में लिखा है- घमवहड्िरपाम प्रस्य चपादास उदग्गती । ५ ५. ८23७ ही है 3 हि दक्षिण ती विपयस्ता प्रणमुहृत्ययनेन तु ॥ अभिपाय यह दे कि जब सूय्य विषवद्व्सरेखा के उत्तर के चलता है तब उत्तरोय भाग में दिन बढ़ने लगता हे भर रावि घटने लगतो है जब सूर्यदक्षिण के जाता




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