संस्कृत और हिंदी | Sanskrit Aur Hindi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27.51 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ | खल्लोसरं रदमथों दुफालि कुत्थं तदुत्थोत्थ दिबीरनामा । श्मौर स्यादिक्वाल इशराफ योग --इत्यादि रसल रमल नामक ज्योतिष-बिद्या के अन्थों में बीसों अरबी और फारसी के शब्द व्यवहहत हुए हैं। एक इलोक में तारीख शब्द का ऐसा व्यवहार किया गया है मानो वह पाणिनि का ही शब्द हो-- तार्खि च त्रितये प्रयोद्शे सुल्तान शब्द का सुरब्राण रूप संस्कृत के काव्य ग्रन्थों में ही नहीं मुसलमान बादशाद्दों के सिक्कों पर भी पाया जाता है । पुरातन- प्रचन्ध-संप्रह में एक जगह मस्जिद को मसीति बनाकर ही प्रयोग ही नहीं किया गया है. श्रनुप्रास के साँचे सें बेठाकर अशीतिमंसीति कहकर उसमें सुकुमारता भी लाई गई है । नहीं में यह नहीं कह रहा हूँ कि झाप विदेशी शब्दों को निका- लना शुरू करें । गवं है कि श्ापने ्याज जिस भाषा को अपने लिये सामान्य -माषा के रूप में वरण किया है उसने उदू के रूप में इतने विदेशी शब्दों को दइजस किया है कि संसार की समस्त विदेशी भाषाओं को पाचन-शक्ति की प्रतिद्वान्दिता में पीछे छोड़ गई है । प्रचलित शब्दों का त्याग करना मृखेंता है पर मैं साथ ही जोर देकर कददता हूँ कि किसी विदेशी भाषा के शब्दों के झा जाने भर से कदद विदेशी शाषा संस्कृत के साथ बराबरी का दावा नहीं कर सकती । बह हमारे नवीन झावों के प्रकाशन के लिये संस्कृत के शब्दों को गढ़ने से हमें नहीं रोक सकती ।
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