श्री भक्तअमर कथा यन्त्र मन्त्र सहित | Shri Bhaktamar Katha yantra-mantra Sahit

Shri Bhaktamar Katha  yantra-mantra Sahit by धनंजय - Dhanajay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) छडिनित हुआ और उस इंडे वाले लड़के से पूछने ठगा कि बताओ तुम डण्ड! कहों से छाया करते हो १ दम भी, तुम्हें ला देवें । लड़कों ने देवल बढ़ई का घर बता दिया और सोमक्रांति उसके घर गये बढ़ई ने उण्डे के दाम छे छिये और दूसरे दिन तैयार कर रखनेको कह दिया। सवेरा होते ही सोमक्रॉंति पाठशाला में तो गया परन्तु चढईके यहां से इण्डा लाने की चिन्ता लगी रही इसलिये बह बीच ही में भोजनके वहाने छुट्टी छेकर देवलके घर चढ़ा गया, हाथमें भक्तामरजी की पुस्तक लिये हुए था उसे देखकर बढुई बोला । चढ़ई--यह हाथमें क्या लिये हुए हो १ बालक--जेन-धर्म का पवित्र ग्र्थ भक्तामर है । चढ़ई--थोड़ा-सा मुझे भी पढ़कर सुनाओ । चाठक--पांचवां काव्य रिदट्वि मन्त्र समेत सुना देता है । चढ़ई--इस मंत्र का क्या फल है चालक--यदद मंत्र मनवाँछित फल का दाता है । बढ़ई--तथब तो आप हमारे ऊपर कृपा करो और मुझे विधिपूवक सिखा दो । चर चाठक--पह़िे तुम श्रावक के व्रत लो पीछे मंत्र सीखो । बढ़ई ने श्रावक के श्रत और जेन-ध्म अंगीकार करके मंत्र सीख लिया और दो इण्डे छाकर एक उस लड़के को देकर दूसरे से आप खोलने लगा ।




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