अलंकार प्रकाश | Alankar Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१र के इतिहास से प्रनभिन्न होने के कारगा ही उन्होंने पंचम को सुम्रन का विज्पणा माना । वास्तव में सुपंचम देवीसिह का बिशेषणण है | घुन्देल वंग के इतिहास से सिद्ध है कि उसका प्रवर्तक पंचम नाम थे विख्यात था । काशिराज के पुत्र गहिरदेव के नाम से उनके वंझाज गहरवार विश्यात हुये थे । विक्रम की १२ वीं सताव्दी में काशी के राजा दिवोदास थे । उनकी दो रानियाँ थीं । प्रथम राती से चार पुत्र हुए श्रौर द्वितीय से पांचवां पुत्र था जिसका नाम हेमक्ण था । दिवोदास का स्वर्गवास होने पर उनका ज्येण्ठ पुत्र बीरभद्र सिंहासनासीन हु वीरभद्र श्रीर उसके तीनों भाई सौतेले भाई हेमक्ण को द्वेपटष्टि से देखते ग्रौर उसे पंचम नाम से सम्बोधित करते थे । हेमकर्ण श्रौर उसकी माता को उन्होंने जब्र काशी से निकाल दिया तो अपनी माता के ग्रादेशानुसार हमकर्ण पंचम ने भगवती वित्थ्यवासिनी की श्राराधना की । एक दिन श्रधंरात्रि के समय भगवती के चरणों में श्रपना शी दा भ्रपित करने के लिये उसमे अपनी गन पर तलवार चलाई । जगदम्बा ने प्रकट होकर तलवार छीनली किन्तु तलवार की धार से गले से एक बुद खून जगदम्वा के चरणों पर पड़ा । भगवती ने इसे यह बरदान दिया कि तुम्हारे रक्त से उत्पन्न सन्तान मेरे नाम से प्रसिद्ध होकर विन्थ्येला कहलायेगी श्र इसी घिन्ध्यपवंत्त की उपत्यका में सुविस्तृत भु-भाग पर राज्य करेगी तथा काशी का राज्य भी तुम्हें प्राप्त होगा । कुछ समय पश्चात भारत पर गाजी उद्दीन का श्राक्रमण हुआ शऔर हेमक्ण पंचम के चारों सौतेले भाई युद्ध में काम भ्राये । काशी गाजीउद्दीन के प्रधिकार में थ्रा गई। हेमकर्ण पंचम ते गाजीउद्दीन से युद्ध किया श्र उसे पराजित कर काशी को हस्तगत किया । उसका राज्य कांशी से विन्ध्य पर्वत तक फल गया | मतिरामकृत वृतकौमुदी छन्दसार पिंगल द्वारा जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है इसकी पु्ण॑रुपेण पुष्टि होती है कि बुन्देल-




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